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| इतिहासातीत काल में दिगम्बर मुनि ।
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“आतिथ्यरूपं मासरं महावीरस्य नाम: रूपमुपसदा पेतत्तिस्रो रात्रीः सुरासुता।"
-यजुवेंद, अ.१९.पंत्र १४ भारतवर्ष का ठीक-ठीक इतिहास ईस्त्री पूर्व आठवीं शताब्दी तक माना जाता है। इसके पहले की कोई भी बात विश्वसनीय नहीं मानी जाती, यद्यपि भारतीय विद्वान अपनी-अपनी धार्मिक-वार्ता इस काल से भी बहत प्राचीन पानते और उसे विश्वम्मनोय स्वीकार करते हैं। उनकी यह वार्ता 'इतिहासातीत काल' की वार्ता सपझनी चाहिये। दिगम्बर मुनियों के विषय में भी यही बात है। भगवान ऋपभदेव द्वारा एक अज्ञात अतीत में दिगम्बर मुद्रा का प्रचार हुआ और तब से वह ईस्वी पूर्व आठवीं शताब्दी तक ही बल्कि आज तक शिः धलित हैं। विलम्ब पुद्रा के इस इतिहास की एक सामान्य रूपरेखा यहाँ प्रस्तुत करना अभीष्ट है।
इतिहासातीत काल में प्राचीन जैन शास्त्र अनेक जैन-सम्राट और जैन तीर्थंकरों का होना प्रकट करते है और उनके द्वारा दिगम्बर मुद्रा का प्रचार भारत में ही नहीं बल्कि दूर-दूर देशों तक हो गया था। दिगम्बर जैन आम्नाय के प्रथमान योग सम्बन्धी शास्त्र इस कथा-वार्ता से भरे हुवे हैं, उनको हम यहाँ दुहराना नहीं चाहते, प्रत्युत जनता शास्त्रों के प्रपागों को उपस्थित करके हम यह सिद्ध करना चाहते हैं कि दिगम्बर मुनि प्राचीन काल से होते आये हैं और उनका विहार सर्वत्र निर्वाध रूप से होता रहा है।
भारतीय साहित्य में वेद प्राचीन ग्रंथ पाने गये हैं। अतः सबसे पहिले उन्हीं के आधार से उक्त व्याख्या को पुष्ट करना श्रेष्ठ है। किन्तु इस सम्बन्ध में यह बात ध्यान दने योग्य है कि वेदी क ठीक-ठीक अर्थ आज नहीं मिलते और भारतीय धर्मों के पारस्परिक विरोध के कारण बहुत से ऐसे उल्लेख उनमें से निकाल दिये गये अथवा अर्थ बदलका रखे गए हैं जिनमे वेद-बाह्य सम्प्रदायों का समर्थन होता था। इसी के साथ यह बात भी है कि वेदों के वास्तविक अर्थ आज ही नहीं मुद्दतों पहले लुप्त हो चुके थे और यही कारण है कि एक ही वेद के अनेक विभिन्न भाष्य मिलते हैं। अतः वेदों के मूल वाक्यों के अनुसार उक्त व्याख्या की पुष्टि करना यहाँ अभीष्ट हैं।
१. ई. पूर्व. ७ वीं शताब्दि का वैदिक विद्वान कौत्स्य वेदों की अनर्थक बतलाता है। (अनर्थका हि मंत्राः। यास्क, निरूक्त १५-१) यास्क इसका समर्थन करता है। (निरुक्त १६ । २ देखो'Asur India', p.1,9
दिगम्बरत्य और दिगम्बर पनि
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