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"क्षपणका जैनमार्गसिद्धान्तप्रवर्तका इति केचित्।" "प्रबोधचंद्रोदय नाटक" (अंक ३) में भी यही निर्दिष्ट किया गया है
"क्षपणकवेशो दिगम्बरसिद्धान्तः।" "पंचतंत्र-अपरीक्षितकारकतंत्र “दशकुमार चरित्र " था मुद्राराक्षस-नाटक"" में भी "क्षपणक" शब्द दिगम्बर मुनि के लिए व्यवहृत हुआ मिलता है। मोनियर विलियम्स के संस्कृत कोष' में भी इसका अर्थ यही लिाता है।
__इस प्रकार उपर्युक्त नापों से दिगम्बर जैन मुनि प्रसिद्ध हुये मिलते हैं। अतएव इनमें से किसी भी शब्द का प्रयोग दिगम्बर पुनि का द्योतक ही समझना चाहिये।
१. HO.111,245, 13 JG.,XIVAS. २.J.G.,XIV48. ३. (क्षपणक विहार गत्वा)-"एकाकीगृहसंत्यतः पाणिपात्रो दिगम्बरः।' ४. द्वितीय उच्छवास, वीर, वर्ष २, पृ. ३१७ । ५. मुद्राराक्षस. अंक ४-वीर, त्रर्प ५, पृ. ४३०
6." kaspnaka is a rcligious mendicant, specially a Jain mendicant who wears no gurnicnt." - Monics William's, Sanskrit Dictionary, p.326, (54)
दिगम्बरत्य और दिगम्बर पनि