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________________ आइरियउवज्झाया पवत्त थेरा गणधरा या।" ३१. साधु-आत्मसाधना में लीन दिगम्बर मुनि। इनको भी कुछ परिग्रह न रखने का विधान है - ३२. संन्यस्त २- संन्यास ग्रहण किये हुए होने के कारण दिगम्बर मुनि इस नाम से भी प्रख्यात हैं। ३३. श्रमण-अर्थात् सपरसी 'पाव सहित दिगम्बर साधु। उल्लेख यूं है ५ तव सावा (कदम अपमान 'समणोमेति य पढम विदियं सब्बत्थ संजदो पेत्ति।" ३४. क्षपणक-नग्न साधु। दिगम्बराचार्य योगीन्द्र देव ने यह शब्द दिगम्बर साधु के लिए प्रयुक्त किया है "तरुणउ बूढउ रूपडउ सूरउ पंडिङ दिव्यु। खवणउ वंदउ सेवडसूढ़ मण्णइ सव्व।।८३।। श्वेताम्बर जैन ग्रंथो में भी दिगम्बरपनियों के लिये यह शब्द व्यवहत हुआ है। "खोमाणराजकुलजोऽपिसमद्र सरि । गच्छं शशास किल दपत्रण प्रमाण (?)। जित्वा तदां क्षपणकान्स्ववशं वितेने नागेंद्रदे (?) भुजगनाथनमस्य तीर्थ।" श्री मुनिसुन्दर सुरि ने अपनी गुर्वावली में इस श्लोक के भाव में 'क्षपणकान्' को जगह 'दिगवसनान पद का प्रयोग करके इसे दिगम्बर मुनि के लिये प्रयुक्त हुआ स्पाष्ट कर दिया है। श्वेताम्बराचार्य हेमचन्द्र ने अपने कोष में 'नग्न' का पर्यायवाची शब्द 'क्षपणकभी दिया है। यही बात श्रीधरसेन के कोष से भी प्रकट है। अजैन शास्त्रों में भी 'क्षपणक' शब्द दिगम्बर जैन साधुओं के लिए व्यवहत हुआ मिलता है। 'उत्पल कहताहै ? - "निधो नग्नः क्षपणकः।" "अद्वैतब्रह्मसिद्ध' (पृ.१६९) से भी यही प्रकट है १. अष्ट पृ.६७| २. वृजेश. पृ.४। ३. अष्ट,पृ. ३७। ४. भूला., पृ. ४५। ५. 'परमात्म प्रकाश-रश्रा. पृ. १४० ६. रश्रा,,पृ.१३९। ७. रा., पृ. १४०। ८, नग्नो विवाससि मागधे च क्षपणके।' ९. 'नग्नस्त्रिषु विवस्त्रे सयात्पुसि क्षपणवन्दिनोः ।' दिगम्बराय और दिगम्बर मुनि
SR No.090155
Book TitleDigambaratva Aur Digambar Muni
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherDigambar Jain Sarvoday Tirth
Publication Year
Total Pages195
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size4 MB
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