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२०. पाणिपात्र- करपात्र ही जिनका भोजनपात्र है, वह दिगम्बरमुनि।
"णिच्चेल पाणिपतं' उबइठं परम जिणवरिंदेहि।' २१. भिक्षक-भिक्षावृत्ति का धारक होने के कारण दिगम्बर पुनि इस नाम से प्रसिद्ध होता है। इसका उल्लेख 'मूलाचार' में मिलता है
"मणवचकायपउत्ती भिक्खू सावज्जकजसंजुत्ता।
खि णिवारयंतो तिहि दु गुत्तो हवदि एसो।।३३१।। २२. महाव्रती'-पंच महाव्रतों को पालन करने के कारण दिगम्बर मुनि इस नाम से प्रगट हैं।
२३. माहण ममत्व त्यागी होने के कारण माहण नाम से दिगम्बर मुनि अभिहित होता है। २४. मुनि- दिगम्बर साधु श्री कुन्दकुन्दाचार्य इस का उल्लेख यू करते हैं -
"पंच पहब्वयजुत्ता पंचिंटिय संजमा गिरावेक्खा।
सज्झायझाणजुत्ता मणिवर वसहा जिइच्छति।।' २५, यति-दिगम्बर पनि कुन्दकन्द स्वामी कहते हैं
"सुद्धं संजमचरणं जइधम्म णिक्कलं वोच्छे" २६. योगी-योगनिरत होने के कारण दिगम्बर साध का यह नाम है। यथा
"जं जाणियूण जोई जो अत्थो जोइ ऊण अणवरया
अव्वाबाहमणतं अयोवयं लहइ णिव्याणं।।" २७. वातवसन-वायुरूपी वस्त्रधारी अर्थात् दिगम्बर मुनि।
"श्रमण दिगम्बराः श्रमण वातवसनाः" -इतिनिघण्टुः २८. विवसन- वस्त्र रहित मुनि। वेदान्तसूत्र को टीका में दिगम्बर जैन मुनि 'विवसन' और 'विसिच्' कहे गए हैं। २१. संयमी(संयत्)- यमनियमों का पालक सो दिगम्बर मुनि। उल्लेख यूं है
पंचमहव्वय जत्तो तिहि गतिहिं जो स संजदो होइ।" ३०. स्थविर दीर्घ तपस्वी रूप दिगम्बर मनि। 'मलाचार' में उल्लेख इस
प्रकार : स्थविर- दीर्घ
"तत्थ ण कप्पइ वासोजत्थ इमे णत्थि पंच आधारय।
१, वृजेश, पृ. ४। २. अष्ट. पृ.१४२। ३. अष्ट.,पृ.९९) ४. अष्ट.,पृ. २९०। ५. अष्ट,,पृ. २९०। . ६. वेदान्तसूत्र २-२-३३ - शंकरभाष्य-वीर, वर्ष २, पृ. ३१७। ७. अष्ट,, पृ.७१। ८. मूला., पृ.७१।
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दिगम्बत्व और दिगम्बर मुनि