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'दाठावंसो में अहिरिका शब्द के साथ-साथ निगण्ठ शब्द का प्रयोग जैन साधु के लिये हु-सा मिलता है और हमारा हिरिक शब्द नाक द्योतक है। इसलिये बौद्ध साहित्यानुसार भी निग्रंथ साधु को नग्न मानना ठीक है।
शिलालेखीय साक्षी भी इसी बात को पुष्ट करती है। कदम्बवंशी महाराज श्री विजयशिवमृगेश वर्मा ने अपने एक ताम्रपत्र में अहंत भगवान और श्वेताम्बर महाश्रमण संघ तथा निग्रंथ अर्थात् दिगम्बर महाश्रमण संघ के उपभोग के लिये कालवंग नामक ग्राम को भेंट में देने का उल्लेख किया है।
यह ताम्रपत्र ई. पांचवी शताब्दी का है। इससे स्पष्ट है कि तब के श्वेताम्बर भी अपने को निग्रंथ न कहकर दिगम्बर संघ को ही निथ संघ मानते थे। यदि यह बात न होती तो वह अपने को 'श्वेतपट और दिगम्बर को 'निग्रंथ न लिखाने देते।
कदम्ब ताम्रपत्र के अतिरिक्त विक्रम सं. ११६१ का ग्वालियर से मिला एक शिलालेख भी इसी बात का समर्थन करता है। उसमें दिगम्बर जैन यशोदेव को 'निर्ग्रथनाथ' अर्थात् दिगम्बर मुनियों के नाथ श्री जिनेन्द्र का अनुयायी लिखा है। अतः इससे भी स्पष्ट है कि 'निर्गथ' शब्द दिगम्बर मुनि का घोतक है।'
चीनी यात्री ह्वेनसांग के वर्णन से भी यही प्रकट होता है कि निग्रंथ' का भाव नग्न अर्थात् दिगम्बर मुनि हैं
The Li-hi (Niyanth's) distinguish themselves lyy leaving thưir bodies naked and pulling out their hair" (St. Julien, Vienna, p.224).
अतः इन सब प्रमाणों से यह स्पष्ट है कि 'निग्रंथ' शब्द का ठीक भाव दिगम्बर (नग्न) मुनि का है।
१९. निरागार- आगार-घर आदि परिग्रह रहित दिगम्बर मुनि। 'परिगहरहिओ निरायारो'।
१. 'इसमें अहिरिका सब्वे सद्धादिगुण वज्जिता। यद्धा साठाच दुप्पज्जासागमोक्ख विबन्धका |1८८।। इति सो चिन्तयित्वान गृहसीवो नराधिपो। पवाजेसि सकारट्ठा निगण्ठे ते अपेसके।।८९ ।।
-दाठावंसो, पृ. १४ २. कदम्बा श्री विजयशिवगेशं वर्मा कालवगं ग्राम विघा विभज्य दत्तवान अत्रपूर्वमर्हच्छाला परमपुष्कलस्थान निवासिभ्यः पगवर्दहन्महाजिनेन्द्र देवताभ्य एकोभागः द्वितीयोहत्प्रोक्तसद्धर्मकरण परस्य श्वेतपट महाश्रमणसंघोपभोगाय तृतीयो निग्रंथमहाश्रमणसंघोपभोगायेति...।
-जैहि.. भा. १४,पृ. २२२ । 3. The (iwalior inscrips of Vik. 1161 (1104 A.D.).
"11 was composed by a Jaina Yasodeva, who was an adherent of the digambara or nude sect (Nigranihanalha)."-Catalogue of Archacalogical Exhibits in the U.P.P. Muscum, Lucknow, Pt.I (1915), p. 44, दिगम्बरत्व और दिगम्बर मुनि
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