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दिगम्बर जैन मुनि
"जधजादरुवजाद उप्पाडिद केसमंसगं सुद्ध। रहिंदं हिसादीदो अप्पडिकम्मं हदि लिग।।५।। मुच्छारंभविजुत्तं जुक्तं उवजोग जोग सुद्धीहि। लिंग ण परावेक्खं अपुणपत्र कारणं जोण्हं।।६।।"
-प्रवचनसार दिगम्बर जैन मुनि के लिये जैन शास्त्रों में लिखा गया है कि उनका लिंग अथवा वेश यथाजातरूप नग्न हैं- सिर और दादी के उन्हें नहीं रखने होते। वे इन स्थानों के बालों को हाथ से उखाड़ कर फेंक देते है-यह उनको केशलञ्चन क्रिया है। इसके अतिरिक्त दिगम्बर जैन पुनि का वेश शुद्ध, हिंसादिरहित. श्रृंगाररहित, पमता-आरम्भ रहित, उपयोग ओर योग की बुद्धि सहित र व्यास रहि। मोक्ष का कारण होता है। सारांश रूप में दिगम्बर जैन मुनि का वेष यह है, किन्तु यह इतना दुर्द्धर और गहन है कि संसार-प्रपंच में फंसे हुए मनुष्य के लिये यह सम्भव नहीं है कि वह एकदम इस वेश को धारण कर ले, तो फिर क्या वेश अव्यवहार्य है? जैन शास्त्र कहते है, 'कदापि नहीं।" और यह है भी ठीक क्योंकि उनमें दिगम्बरत्व को धारण करने के लिये मनुष्य को पहले से ही एक वैज्ञानिक ढंग पर तैयार करके योग्य बना लिया जाता है और दिगम्बर पद में भी उसे अपने पूल उद्देश्य की सिद्धि के लिये एक वैज्ञानिक ढंग पर ही जीवन व्यतीत करना होता है। जैनेतर शास्त्रों में यद्यपि दिगम्बर देश का प्रतिपादन हुआ मिलता है. किन्तु उनमें जैनधर्म जैसे वैज्ञानिक नियम-प्रवाह की कपी है और यही कारण है कि परमहंस वानप्रस्थ भी उनमें सपत्नीक मिल जाते है। जैन धर्म के दिगम्बर साधुओं के लिये ऐसी बातें बिल्कुल असंभव है।
अच्छा तो, दिगम्बर वेष धारण करने के पहले जैन धर्म समक्ष के लिए किन नियमों का पालन करना आवश्यक बतलाया है? जैन शास्त्रों में सचमुच इस बात का पूरा ध्यान रखा गया है कि एक गृहस्थ एकदम छलांग मारकर दिगम्वरत्व के उन्नत
१. यूनानी लेखकों ने उनका उल्लेख किया है। देखोA.I.1.181.
दिगम्यस्थ और दिगम्बर मुनि
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