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इस उपदेश के अनुसार इस्लाम में त्याग और वैराग्य को विशेष स्थान मिला। उसमें ऐसे दरवेश हये जो दिगम्बरत्व के हिमायती थे और तर्किस्तान में 'अब्दलाAbdal), नापक दरवेश मादरजात नंगे रहकर अपनी साधना में ली रहते बताये गये है। इस्लाम के महान सूफी तत्वेत्ता और सुप्रसिद्ध 'मनस्वी' नामक ग्रन्थ के रचयिता श्री जलालुद्दीन रुमी दिगम्बरत्व का खला उपदेश निम्न प्रकार देते हैं१. “गुफ्त मस्त ऐ महतब बगुजार रख-अज बिरहना के तवां बुरदन गाव!"
(जिल्द २ सफा २६२) २. “जापा पोशांरा नजर पागाज रास्त-जामै अरियाँ रा तजल्लो जेवर अस्त।"
(जिल्द २ सफा ३८२) ३. “याज अरियानान बयकसू बाज रव-या यूँ ईशां फारिंग व बेजामा शव!" ४. "वरनमी तानी कि कुल अरियाँ शबी-जामा कम कुन ता रह औरत रवी!"
(जिल्द २ सफा ३८३) इनका उर्दू में अनुवाद 'इल्हामे मन्जूम' नामक पुस्तक में इस प्रकार दिया हुआ
१. पस्त बोला, महतब, कर काम जा, होगा क्या नंगे से तू अहदे वर आ। २. है नजर धोबी पै जामै-पोश की है, ताल्ली जेवर अरियां तनी !! ३. या विरहनों से हो यकसू वाकई, या हो उनकी तरह बेजापै अखी!
४, मुतलकन अरियाँ जो हो सकता नहीं, कपड़े कम यह है कि औसत के करी!!
भाव स्पष्ट है कोई तार्किक मस्त नंगे दरवेश से आ उलझा। उसने सीधे से कह दिया कि जा अपना काम कर, तू नंगे के सामने टिक नहीं सकता। वस्त्रधारी को हमेशा धोबी की फिकर लगी रहती है, किन्तु नंगे तन की शोभा देवी प्रकाश है। बस, या तो तू नंगे दरवेशों से कोई सरोकार न रख अथवा उनकी तरह आजाद और नंगा हो जा! और अगर त एकदम दूसरे कपड़े नहीं उतार सकता तो कम से कम कपड़े पहन और मध्यमार्ग को ग्रहण कर। क्या अच्छा उपदेश है। एक दिगम्बर जैन साधु भी तो यही उपदेश देता है। इससे दिगम्वरत्व का इस्लाम से सम्बन्ध स्पष्ट हो जाता है।
१. "The higher saints of Islam, called Adals generally went about perfectly naked; as described by Miss Lucy M.Garnet in her exoellent account of the lives of Muslim Dervishes. entitled "Mysticism & Magic in Turkey."N.J., p. 10
२. जिल्द और पृष्ठ के नम्बर "मस्नवी के उर्दू अनुवाद "इल्हामे मन्जूम के हैं।
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दिगम्बरत्व और दिगम्बर मुनि