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इस्लाम और दिगम्बरत्व ।
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"I am no apostle of new doctrines". suid Muhanımad." neither know 1 what will be done with me or you".
Koran, XLVI पैगम्बर हजरत महम्मद ने खुद फरमाया है कि "मैं किन्हीं नये सिद्धान्तों का उपदेशक नहीं हूँ और मुझे यह नहीं मालूम कि मेरे या तुम्हारे साथ क्या होगा ?" सत्य का उपासक और कह ही क्या सकता है ? उसे तो सत्य को गुमराह भाइयों तक पहुंचाना पड़ता है। मुहम्मद साहब को अरब के असभ्य लोगों में सत्य का प्रकाश फैलाना था। वह लोग ऐसे पात्र न थे कि एकदम ऊँचे दर्जे का सिद्धान्त उनको सिखाया जाता। उस पर भी हजरत मुहम्मद ने उनको स्पष्ट शिक्षा दी कि
'The love of the world is the root of all evil.'
The world is as a prison and as a famine to Muslims; and when they Icave it you may say they leave faminc and a prison
(Sayings of Mohammad) अर्थात्- “संसार का प्रेम ही सारे पाप की जड़ है। संसार मुसलमान के लिए एक कैदखाना और कहत के समान है और जब वे इसको छोड़ देते हैं तब तुम कह सकते हो कि उन्होंने कहत और कैदखाने को छोड़ दिया।" त्याग और वैराग्य का इससे बढ़िया उपदेश और हो भी क्या सकता है ? हजरत मुहम्मद ने स्वयं उसके अनुसार अपना जीवन बनाने का यथासंभव प्रयत्न किया था। उस पर भी उनके कम से कप वस्त्रों का परिधान और हाथ की अंगूठी उनकी नमाज में बाधक हुई थी।
किन्तु यह उनके लिये इस्लाम के उस जन्मकाल में संभव नहीं था कि वह खुद नग्न होकर त्याग और वैराग्य-तर्के दुनिया का श्रेप्टतम उदाहरण उपस्थित करते। यह कार्य उनके बाद हुये इस्लाम के सूफी तत्ववेत्ताओं के भाग में आया। उन्होंने 'तर्क अथवा त्याग धर्म का उपदेश स्पष्ट शब्दों में यू दिया
"To abandon the world, its comforts and Press, all thigs now and to come, -conformally with thic Hadees of the Prophıı.
अर्थात्- “दुनिया का सम्बन्ध त्याग देना-तर्क कर देना-उसको आशाइशों और पोशाक-सब ही चीजों को अव की और आगे की-पैगम्बर साहब की हदीस के मुताबिका"
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१. K.K., p. 738. २. Religious Attitude & Lifc in islam, p. 298 & K.K. 793.
दिगम्बरत्व और दिगम्बर मुनि