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________________ इस्लाम के इस उपदेश के अनुरूप सैकड़ों मुसलमान फकीरों ने दिगम्बर वेष को गतकाल में धारण किया था। उनमें अबुलकासिम गिलानी और सरपद शहीद उल्लेखनीय हैं। सरपद बादशाह औरंगजेब के सपय में दिल्ली से होकर गुजरा है और उसके हजारो नंगे शिष्य भारत भर में बिखरे पड़े थे। वह पूल में कज़हान (अरमेनिया) का रहने वाला एक ईसाई व्यापारी था। विज्ञान और विद्या का भी वह विद्वान था। अरबी अच्छी खासी जनता था और व्यापार के निमित्त भारत में आया था। ठट्टा (सिंध) में एक हिन्दू लड़के के इश्क में पड़कर मजूनं बन गया।' तदोपरांत इस्लाम के सूफी दरवेशों की संगति में पड़कर मुसलमान हो गया। मस्त नंगा बह शहरों और गलियों में फिरता था। वह अध्यात्मवाद का प्रचारक था। घूमता-धामता वह दिल्ली जा डरा। शाहजहाँ का वह अन्त सपय था। दाराशिकोह, शाहजहाँ बादशाह का बड़ा लड़का, उसका पक्त हो गया। सरमद आनन्द से अपने मत का प्रचार दिल्ली में करता रहा। उस समय फ्रांस से आये हुए डा. बर्नियर ने खुद अपनी आँखों से उसे नंगा दिल्ली की गलियों में घूमते देखा था। किन्तु जब शाहजहाँ और दारा को मारकर औरंगजेब बादशाह हुआ तो सरमद की आजादी में भी अडंगा पड़ गया। एक मुल्ला ने उसकी नग्नता के अपराध में उसे फांसी पर चढ़ाने की सलाह औरंगजेब को दी, किन्तु औरंगजेब ने नग्नता को इस दण्ड की वस्तु न सपझा और सरपद से कपड़े पहनने की दरख्वास्त की। इएने उत्तर में सम्पद ने कहा “ऑकस कि तुरा कुलाह सुल्तानी दाद, पारा हम ओ अस्वाब परेशानी दाद, पोशानीद लबास हरकरा ऐबे दीद, बे ऐबा रा लबास अर्यानी दाद।" यानि "जिसने तुमको बादशाही ताज दिया, उसी ने हमको पेरशानी का सामान दिया। जिस किसी में कोई ऐब पाया, उसको लिबास पहनाया और जिनमें ऐन न पाये उनको नंगेपन का लिवास दिया।" १. K.K, p,739 and NJ.. pp. 8-9 २.J.G.,XX PP. 158-159 3. Bernier remarks : 'l was for a long time visgusled with a celebrated Fukire named Sarmen. Who paraded the streets of Delhi as naked as when he came into the world clc.' (Berniers Travels in the Mogul Empire. p. 317), 8. Emperor told the Ulema that Merc nudity cannot be a rcason of cxccution - J.G. XX, p. 158 दिगम्बराच और दिगम्बर मुनि
SR No.090155
Book TitleDigambaratva Aur Digambar Muni
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherDigambar Jain Sarvoday Tirth
Publication Year
Total Pages195
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size4 MB
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