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________________ 'भिक्षुकोपनिषद्' आदि में संवर्तक, आरुणी, श्वेतकेतु, जड़भरत नात्रेय, शुक, वामदेव, हारीतिको आदि को दिगम्बर साधु बताया है। “याज्ञवल्क्योपनिषद्” में इनके अतिरिक्त दुर्वासा ऋभु निदाघ को भी तूरियातीत परमहंस बताया है।' इस प्रकार उपनिषदों के अनुसार दिगम्बर साधुओं का होना सिद्ध है। में ही किन्तु यह बात नहीं है कि मात्र काव हो, बल्कि वेदों में भी साधु की नग्नता का साधारण सा उल्लेख मिलता है। देखिये 'यजुर्वेद' अ. १९, मंत्र १४ 'में' "आतिथ्यरूपं मासरम् महावीरस्य नग्नहुः । रूपयुपसदामेतस्त्रिस्त्रो रात्री सुरासुता ।। अर्थ - (आतिथ्यरूपं ) अतिथि के भाव (मास) महीनों तक रहने वाले (महावीरस्य) पराक्रमशील व्यक्ति के (नग्नहुः ) नयनरूप की उपासना करो जिससे (एतत्) ये (तिस्रो) तीनों (रात्रीः ) मिथ्या ज्ञान, दर्शन और चारित्ररूपी (सुर) मद्य (असुता) नष्ट होती है। इस मन्त्र का देवता अतिथि है। इसलिये यह मन्त्र अतिथियों के सम्बन्ध में ही लग सकता है, क्योंकि वैदिक देवता का मतलब वाच्य है, जैसा कि निरुक्तकार कर भाव है -- "याते नोच्यते सा देवताः ।" इसके अतिरिक्त 'अथर्ववेद' के पन्द्रहवें अध्याय में जिन व्रात्य और महाव्रात्य का उल्लेख है, उनमें महाव्रात्य दिगम्बर साधु के अनुरूप है। किन्तु यह व्रात्य एक वेदवाह्यसंप्रदाय था, जो बहुत कुछ निग्रंथ संप्रदाय से मिलता-जुलता था। बल्कि यूं कहना चाहिये कि वह जैन मुनि और जैन तीर्थंकर का ही द्योतक है। इस अवस्था में यह मान्यता और भी पुष्ट होती है कि जैन तीर्थंकर ऋषभदेव द्वारा दिगम्बरत्व का प्रतिपादन सर्वप्रथम हुआ था और जब उसका प्राबल्य बढ़ गया और लोगों को समझ पड़ गया कि परमोच्च पद पाने के लिए दिगम्बरत्व आवश्यक है तो उन्होंने उसे अपने शास्त्रों में भी स्थान दे दिया। यही कारण है कि वेद में भी इसका उल्लेख सामान्य रूप से मिल जाता है। अब हिन्दू पुराणादि ग्रंथों में जो दिगम्बर साधुओं का वर्णन मिलता है, वह भी देख लेना उचित है। श्री भागवत पुराण में ऋषभ अवतार के सम्बंध में कहा गया हैवर्हिषी तस्मिन्नेव विष्णुभगवान् परमर्षिभिः प्रसादतो नाभेः प्रियचिकीर्षया तदवरोधायने मरुदेव्यां धर्मान् दर्शयतु कामो वातरशनानां श्रमणानां ऋषीणामूर्धा मन्थिना शुक्लया तनु वाक्ततार। १. 1T, 111.259-260 २. मालूम होता है कि इस मंत्र द्वारा बेदकार ने जैन तीर्थंकर महावीर के आदर्श को ग्रहण किया है। दूसरे धर्मों के आदर्श को इस तरह ग्रहण करने के उल्लेख मिलते हैं। JHQ, ]]], 472–485 | ३. १. देखी भपा प्रस्तावना, पृ. ३२-४९ । " दिगम्बरस्य और दिगम्बर मुनि (29)
SR No.090155
Book TitleDigambaratva Aur Digambar Muni
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherDigambar Jain Sarvoday Tirth
Publication Year
Total Pages195
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size4 MB
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