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इस अवतरण का प्रायः सारा ही वर्णन दिगम्बर जैन मुनियों की चर्या के अनुसार है, किन्तु इसमें विशेष ध्यान देने योग्य विशेषण शुक्लध्यानपरायणः है, जो जैन धर्म की एक खास चीज है। "जैन के सिवाय और किसी भी योग-ग्रन्थ में शुक्लध्यान का प्रतिपादन नहीं मिलता। पतंजलि ऋषि ने भी शुक्लध्यान आदि भेद नहीं बतलाये | इसलिए योग ग्रन्थों में आदि-योगाचार्य के रूप में जिन आदिनाथ का उल्लेख मिलता है वे जैनियों के आदि तीर्थंकर श्री आदिनाथ से भिन्न और कोई नहीं जान पड़ते। १
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अथर्ववेद के 'जाबालोपनिषद्' ( सूत्र ६) में परमहंस संन्यासी का एक विशेषण "निर्ग्रथ" भी दिया है और यह हर कोई जानता है कि इस नाम से जैनी ही प्राचीनकाल से प्रसिद्ध हैं। बौद्धों के प्राचीन शास्त्र इस बात का खुला समर्थन करते हैं। जैन धर्म के ही मान्य शब्द को उपनिषद्कार ने ग्रहण और प्रयुक्त करके यह अच्छी तरह दर्शा दिया हैं कि दिगम्बर साधुमार्ग का मूल स्तोत्र जैनधर्म है और उधर हिन्दू पुराण इस बात को स्पष्ट करते ही है कि ऋषभदेव, जैन धर्म के प्रथम तीर्थकर ने ही परमहंस दिगम्बर धर्म का उपदेश दिया था। साथ ही यह भी स्पष्ट है कि श्री ऋषभवेद-उपनिषद् ग्रंथों के रचे जाने के बहुत पहले हो चुके थे। वेदों में स्वयं उनका और १६ वें अवतार वामन का उल्लेख मिलता है। अतः निस्संदेह भगवान् ऋषभदेव ही वह महापुरुष हैं जिन्होंने इस युग के प्रारम्भ में स्वयं दिगम्बर वेष धारण करके' सर्वज्ञता प्राप्त की थी और सर्वज्ञ होकर दिगम्बर धर्म का उपदेश दिया था। वही दिगम्बरत्व के आदि प्रचारक हैं।
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१. अनेकान्त, वर्ष १, पृ. ५४१ ।
२. "यथाजातरूपश्वरी निर्ग्रन्थो निष्परिग्रहः" इत्यादि - दिमु., पृ. ८
३. जैकोबी प्रभृति विद्वानों ने इस बात को सिद्ध कर दिया है। (Js.PLI Intro.) ४. भपा की प्रस्तावना तथा 'सर्जे' देखो।
५. "विष्णुपुराण" में भी श्री ऋषभदेव को दिगम्बर लिखा है।
|h Rishabha Deva....naked, went the way of the great road. (महाध्वानम् ) -Wilso's Vishnu Purana Vol llg [Book II. Ch.I.] PR 103-104]. ६. श्रीमद्भागवत में ऋषभदेव को 'स्वयं भगवान् और कैवल्यपति' बताया है।
दिगम्बरत्व और दिगम्बर मुनि
(विको..भा. ३. पू. ४४४) ।
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