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________________ भावार्थ- नंगा दुःख पाता है. वह संसार-मागर में भ्रमण करता है, उसे बोधि, वज्ञान द्रष्टि प्राप्त नहीं होती, क्योंकि नंगा होते हुए भी वह जिन-भावना से दूर है। इसका मतलब यही है कि जिन-भावना में युक्न नग्नता ही पूज्य है- उपयोगी है और जिन-भावना से मतलब रागद्वेपादि विकार भावों को जीत लेना है। इस प्रकार नगा रहमा उमी के लिए उपादेय है जो गगद्वेषादि विकार-भावों को जीतने में लग गया है - प्रकृति का होकर प्राकृत वेष में रह रहा है। संसार के पाप-पुण्य, बुगई-भलाई का जिये भान तक नहीं है, वही दिगम्बरन धारण करने का अधिकार्ग है और चूँकि सर्वमाधारण गृहस्थों के लिये इस पापोच्च स्थिति को प्राप्त कर लेना सुगप नहीं है, इसलिये भारतीय ऋपियों ने इसका विधान गृहत्यागी अरण्यवासी साधुओं के लिये किया है। दिगम्बर मुनि ही दिगम्बरत्व को धारण करने के अधिकारी हैं, यद्यपि यह बात जरूर है कि दिगम्बरत्व पनुष्य की आदर्श स्थिति होने के कारण मानव-समाज के पथ-प्रदर्शक श्री भगवान ऋपभदेव ने गृहस्थों के लिये भी पहिने के पर्व दिनों पे नंगे रहने की आवश्यकता का निर्देश किया था और भारतीय गृहस्थ उनके इस उपदेश का पालन एक बड़े जमाने तक करते थे। इस प्रकार उक्त वक्तव्य से यह स्पष्ट है कि दिगम्बरत्व मनुष्य की आदर्श स्थिति है-आरोग्य और सदाचार का वह घोपक ही नहीं जनक है। किन्तु आज का संसार इतना पाप ताप से झुलस गया है कि उस पर एकदम दिगम्बर वारि (जन्म) डाला नहीं जा सकता। जिन्हें विज्ञान-दृष्टि नरसीव हो जाती है. वही अभ्यास करक एक दिन निर्विकारी दिगम्बर पनि के वेप में विचरते हुए दिखाई पड़ते हैं। उनको देखकर लोगों के मस्तक स्वयं क जाते हैं। वे प्रज्ञा–पञ्ज और तपोधन लोक-कल्याण में निरत रहते हैं। श्री-पुरुष, बालक-वृद्ध, ऊंच-नान, पशु-पक्षी सब ही प्राणी उनके दिव्य रूप में सुख-शान्ति का अनुभव करते हैं। भला प्रकृति प्यारी क्यों न हो? दिगम्बरत्व साधु प्रकृति के अनुरूप है। उनका किसी से द्वेप नहीं, ने तो सबके हैं,और सब उनके हैं, वे सर्वप्रिय और सदाचार की पूर्ति होते हैं। __यदि कोई दिगम्बर होकर भी इस प्रकार जिन-भावना से युक्त नहीं है तो जैनाचार्य कहते हैं कि उनका नग्न वेष धारण करना निरर्थक है-पग्मोद्देश्य से वह भटका हुआ है। इस लोक और परलोक, दोनों ही उसके नष्ट हैं। बस, दिगम्बरत्व बहीं शोधनीय है, जहाँ परमोदेश्य दृष्टि से ओझल नहीं किया गया है। तब ही तो वह मनुष्य को आदर्श स्थिति है। १. सागार: अ. ७ श्लोक ७ व थमबु. पृ.२०५-२०५। २. निरट्ठिया नग्नरूई उ तस्म, जे उत्तमट्ठं विबजारसमेइ। इमे बिसे नत्थि परे बिलोए, दुहओ बिसे झिज्जइ तथ्य लोए । ४९ ।" -उत्तराध्ययन सूत्र व्या. २० in vain he adoptos. askedness, who errs alwul nhalters ofparatiount interest. ncider this world oor die next will he his. ile la alkurin luth rexxcc18 in the world -J.IIP. 100 दिगम्बरत्व और दिगम्बर पनि
SR No.090155
Book TitleDigambaratva Aur Digambar Muni
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherDigambar Jain Sarvoday Tirth
Publication Year
Total Pages195
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size4 MB
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