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काया को जीत लिया। साधुओं को नग्नता देखकर भला क्यों नाक भौं सिकोड़ते हो? उनके भावों को क्यों नहीं देखते ? सिद्धान्त यह है कि आत्मा को शारीरिक बंधन से ताल्लुकात की पोशिश से आजाद करके बिलकुल नंगा कर दिया जाये, जिससे उसका निजरूप देखने में आवे।" यह वजह है इन साधुओं के जाहिरदारी के रस्मो रिवाज से परे रहने की। यह ऐब की बात क्या है? ईश्वर कुटी में रहने वालों को अपने जैसा आदमी समझा जाये तो यह गलती है या नहीं। इसलिये आओ सब मिलकर राष्ट्र और लोक कल्याण के लिये स्पष्ट घोषणा करो कविवर वृन्दावन की तान में तान मिलाकर कहो
"सत्यपंथ निग्रंथ दिगम्बर"
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दिगम्बरत्व और दिगम्बर मुनि