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परिशिष्ट
तुर्किस्तान के मुसलमानों में नग्नत्व आदर की दृष्टि से देखा जाता है, यह बात पहले लिखी जा चुकी है। मिस लूसी गार्नेट की पुस्तक "Mysticism and Magic in Turky” के अध्ययन से प्रकट हैं कि “पैगम्बर साहब ने एक रोज मुरीदों के राज और मारफत की बातें अली साहब को बाता दीं और कह दिया कि वह किसी को बतायें नहीं। इस घटना के ४० दिन तक तो अली साहब उस गुप्त संदेश को छुपाये रहे किन्तु फिर उसके दिल में छुपाये रखना असंभव जानकर वह जंगल को भाग गये।” (पृ. ११०)। इस उल्लेख से स्पष्ट है कि पुहम्मद साहब ने राजे मारफत अर्थात योग की बाते बताईं थीं, जिनको बाद में सूफी दरवेशों ने उन्नत बनाया था। इन दरवेशों में अजालुलाब और अब्दाल श्रेणी के फकीर बिलकुल नंगे रहते हैं। मि. जे. पी. ब्राउन नामक साहब को एक दरवेश मित्र ने खालिफ अली की जियारतगाह में मिले हुए अजालुलौब दरवेश का हाल था। उसका रामकीय था। शरीर मझोले कद का था और वह बिलकुल नंगा (Perfecily naked) था। उसके बाल और दाढ़ी छोटे थे और शरीर कमजोर था। उसकी उम्र लगभग ४०-५० वर्ष की थी (पृ. ३६) । इन दरवेशों के संयम की ऐसी प्रसिद्धि है कि देश में चाहे कहीं बेरोक टोक घूमते हैं, कभी अर्द्धनग्न और कभी पूरे नंगे हो जाते हैं। जितने ही वह अद्भुत दिखते हैं उतने ही अधिक पवित्र और नेक गिने जाते हैं।
(The result of this reputataion for sanctity enjoyed by Abdals is that they are allowed to wander at large over the country, sometimes half-cald, sometimes completely naked.)
अपने ज्ञान का प्रयोग खूब करते हैं। घर और साथियों से उन्हें मोह नहीं होता। वे मैदानों और पहाड़ों में जा रमते हैं। वहीं वनफलों पर गुज़रान करते हैं। जंगल के खूंखार जानवरों पर वे अपने अध्यात्म-बल से अधिकार जमा लेते हैं। सारांशतः तुर्किस्तान में यह नंगे दरवेश प्रसिद्ध और पूज्य माने जाते हैं।
यूरोप में नंगे रहने का रिवाज दिनों-दिन बढ़ता जा रहा है। जर्मनी में इसकी खूब वृद्धि हैं। अब लोग इस आन्दोलन को एक विशेष उन्नत जीवन के लिए आवश्यक समझने लगे है। देखिये, २ फरवरी सन् ३२ के "स्टेट्समैन" अखबार में यह ही बात कही गई है
दिगम्बरस्व और दिसम्बर धुनि
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