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________________ जानता है कि पशुओं को अपने शरीर को ढंकने और विवेक से काम लेने की तपोज नहीं है। पशुओं ने विषय विकार पर भी विजय नहीं पाई है। इसके विपरीत दिगम्बर मुनि के सम्बन्ध में उसकी धारणा है और ठीक धारणा है जैसे कि हम निर्दिष्ट कर चुके हैं कि वे साधु तन से ही नंगे नहीं होते बल्कि उनका मन भी विषय विकारों से नंगा है। दिगम्बरत्व का रहस्य उसके बाह्यन्तर रूप में गर्भित है। इस रहस्य को समझकर ही मुमुक्षु दिगम्बर वेष को धारण करके विकार विवर्जित होने का सबूत देते हैं। और आत्म कल्याण करते हुए जगत के लोगों का हित साधते हैं। श्री ऋषभदेव दिगम्बर मुनि हो थे जिन्होंने संसार को सभ्यता और धर्म का पाठ पढ़ाया। श्री सिंहनन्दि आचार्य दिगम्बर वेश में ही विचरे थे, जिन्होंने गंगवंश की स्थापना कराई और उन क्षत्रियों को देश तथा धर्म का रक्षक बनाया। कल्याणकीर्ति आदि मुनिगण नंगे साधु ही थे जिन्होंने सिकन्दर महान जैसे विदेशियों के मन को मोह लिया था, और उन्हें भारत भक्त बनाया था। वे दिगम्बर ऋषि ही थे जिन्होंने अपने तत्वज्ञान का सिक्का यूनानियों के दिलों में जमा लिया था और उन्हें बाद में निग्रहस्थान को पहुंचा दिया था। श्री वादिराज और वासवचन्द्र जैसे दिगम्बर मुनि धीर वीरता के आगार थे। उन्होंने रणांगण में जाकर योद्धाओं को धर्म का स्वरूप सपझाया था और श्री समन्तभद्राचार्य दिगम्बर साधु ही थे जिन्होंने सारे देश में विहार करके ज्ञान सूर्य को प्रकट किया था। सम्राट चन्द्रगुप्त, सम्राट अमोघवर्ष प्रभृति महिमाशाली नारत्न अपनी अतुल राजलक्ष्मी को लात मारकर दिगम्यर ऋषि हुये थे। ये सब उदाहरण दिगम्बरत्त्व और दिगम्बर मुनियों के महत्व और गौरव को प्रकट करते हैं। दिगम्बर मुनियों के पूलगुणों की संख्या परिपाण प्रस्तुत परिच्छेदों में ओत प्रोत दिगम्बर गौरव का बखान है। सचमुच श्री शिवव्रतलाल वर्मान् के शब्दों में - "दिगम्बर मुनि धर्म -कर्म की झलकती हुई प्रकाशमान मूर्तियां हैं। वे विशाल हृदय और अथाह समुद्र हैं जिसमें मानवीय हित कामना की लहरें जोर-शोर से उठती रहती हैं और सिर्फ मनुष्य ही क्यों ? उन्होंने संसार के प्राणी मात्र की भलाई के लिये सबका त्याग किया / प्राणी हिमा को रोकने के लिए अपनी हस्ती को मिटा दिया। ये दुनिया के जबरदस्त रिर्फापर, जबरदस्त उपकारी और बड़े ॐरे दर्जे के वक्ता तथा प्रचारक हुये हैं। ये हमारे राष्ट्रीय इतिहास के कीमती रत्न हैं। इनमें त्याग, वैराग्य, और धर्म का कमाल - सब कछ मिलता है। ये "जिन" हैं, जिन्होंने मोह-माया को तथा पन और १. जैम., पृ. ३-५। दिगम्बराय और दिगम्बरा पुरि (171)
SR No.090155
Book TitleDigambaratva Aur Digambar Muni
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherDigambar Jain Sarvoday Tirth
Publication Year
Total Pages195
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size4 MB
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