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________________ सच बात तो यह है कि ब्रिटिश राज की नीति के अनुसार किसी भी सरकारी कर्मचारी को किसी के धार्मिक मामले में हस्तक्षेप करने का अधिकार नहीं है और भारतीय कानून की ओर से भी प्रत्येक सम्प्रदाय के मनुष्यों को यह अधिकार है कि वह किसी अन्य सम्प्रदाय या राज्य के हस्तक्षेप बिना अपने धार्मिक रीति-रिवाजों का पालन-निर्विघ्न रूप से करें। दिगम्बर जैन मुनियों का नग्न वैध कोई नई बात नहीं है। प्राचीन काल से जैन धर्म में उसको मान्यता चली आई है और भारत के मुख्य धर्मो तथा राज्यों ने उसका सम्मान किया है, यह बात पूर्व पृष्ठों के अवलोकन से स्पष्ट है। इस अवस्था में दुनिया की कोई भी सरकार या व्यवस्था इस प्राचीन धार्मिक रिवाज को रोक नहीं सकती। जैन साधुओं का यह अधिकार है कि बह सारे वस्त्रों का त्याग करे और गृहस्थों का यह हक है कि वे इस नियम को अपने साधुओं द्वारा निर्विघ्न पाले जाने के लिये व्यवस्था करें; जिसके बिना मोक्ष सुख मिलना दुर्लभ है। इस विषय में यदि कानूनी नजीरों पर विचार किया जाय तो प्रकट होता है कि प्रिवी-कौन्सिल (Privy-council) ने सब ही सम्प्रदायों के मनुष्यों के लिये अपने धर्म सम्बन्धी जुलूसों को आम सड़कों पर निकालना जायज करार दिया है। निम्न उदाहरण इस बात के प्रपाण है। प्रिवी कौन्सिल ने मंजूर हसन बनाम मुहम्मद जमन के मुकदमें में तय किया है कि - "Persons of all sects are entitled to conduct rcligious processicas through public streets, so that they do not interfere with the ordinary use of such streets by the public and subjecl to such directions the Magistrate may lawfully give to prevent obstructions of the thorough fare or breaches of the public peace, and the worshippers io a mosque o temple which abulted on a highroad could not compel processionists lo intermit their worship while passing the mosque or lemple on the ground that There was a continuous worship there." (Munzur Hasan Vs Mohammad Zaman. 23 All Law Journal, 179). भावार्थ - प्रत्येक सम्प्रदाय के मनुष्य अपने धार्मिक जुलूसों को आम रास्तों से ले जाने के अधिकारी है, बशर्ते कि उससे साधारण जनता को रास्ते के उपयोग करने में दिक्कत न हो और मजिस्ट्रेट की उन सूचनाओं को पाबन्दी भी हो गई हो जो उसने रास्ते की रुकावट और अशान्ति न होने के लिये उपस्थित की हों और किसी पस्जिद या मन्दिर, मन्दिर या मस्जिद के पास से निकले, मात्र इस कारण कि उस दिगम्परत्व और दिगम्बर मुनि (162)
SR No.090155
Book TitleDigambaratva Aur Digambar Muni
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherDigambar Jain Sarvoday Tirth
Publication Year
Total Pages195
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size4 MB
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