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(१) श्री शान्तिसागर जी आचार्य, (२) मुनि चंद्रसागर, (३) पुनि सागर, (४) मुनि बीरसागर, (५) मुनि नमिसागर (६) मुनि ज्ञानसागर ।
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(२) श्री सूर्य सागर जी का संघ दूसरा संघ श्री सूर्यमागर जी महाराज का है. जो अपनी सादगी और धार्मिकता के लिये प्रसिद्ध है। खुरई में इस सम का चातुर्मास व्यतीत हुआ था। उस समय इस संघ में मुनि सूर्यसागर जी के अतिरिक्त मुनि अजित सागर जी मुनि धर्मसागर जी और ब्रह्मचारी भगवानदास जी थे। खुरई से अब इस संघ का बिहार उसी ओर हो रहा है। मुनि सूर्यसागर जो गृहस्थ दशा में श्री हजारीलाल के नाम से प्रसिद्ध थे। वह पोरवाड़ जाति के झालरापाटन निवासी श्रावक थे। मुनि शान्तिसागर जी छागी के उपदेश से निग्रंथ साधु हुये थे।
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(३) श्री शान्तिसागर जी का संघ तीसरा संघ मुनि शान्तिसागा जी छाणी का है, जिसका गत चातुर्मास ईडर में हुआ था। तब इस संघ में पुनि मल्लिसागर जी. ब्र. फतहसागर जी और ब्र. लक्ष्मीचंद जी थे। मुनि शान्तिसागर जी एकान्त में ध्यान करने के कारण प्रसिद्ध हैं। वह छाणी (उदैपुर) निवासी दशा - हुमड़ जाति के रत्न हैं। भादव शुक्ल १४ सं. १९७९ को उन्होंने दिगम्बर वेष धारण किया था। उन्होंने भुखिया (बाँसवाड़ा) के ठाकुर क्रूरसिंह जी साहब को जैन धर्म में दीक्षित करके एक आदर्श कार्य किया है।
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(४) श्री आदि सागर जी का संघ मुनि आदिमागर जी के चौथे संघ ने उदगाँव में पिछली वर्षा पूर्ण की थी। उस समय इनके साथ मुनि मल्लिसागर जी क्षुल्लक सूरोसिंह जी थे।
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(५) श्री मुनीन्द्र सागर जी का संघ गत चातुर्माम में श्री मुनीन्द्रसागर जी का पाँचवाँ संघ मांडवी (सूरत) में मौजूद रहा था। उनके साथ श्री देवेन्द्रसागर जी तथा विजयसागर जी थे। मुनीन्द्रसागर जी ललितपुर निवासी और परवार जाति के हैं। उनकी आयु अधिक नहीं है। वह श्री शिखरजी आदि सीर्थों की वन्दना कर चुके हैं।
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(६) श्री मुनि पायसागर जी का संघ छटा संघ श्री पुनि पायसागर जी का है, जो दक्षिण भारत की ओर ही रहा है।
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इनके अतिरिक्त मुनि ज्ञानसगार जो ( खैराबाद), मुनि आनन्दसागर जी आदि दिगम्बर साधुगण एकान्त में ज्ञान ध्यान का अभ्यास करते हैं। दक्षिण भारत में उनकी संख्या अधिक है। ये सब ही दिगम्बर मुनि अपने प्राकृत वेश में सारे देश में विहार करके धर्म प्रचार करते हैं। ब्रिटिश भारत और रियासतों में ये बेरोक-टोक धूमे हैं; किन्तु गतवर्ष काठियावाड़ के कमिश्नर ने अज्ञानता से मुनीन्द्रसागर जी के संघ पर कुछ आदमियों के घेरे में चलने की पाबन्दी लगा दी थी जिसका विरोध अखिल भारतीय जैन समाज ने किया था और जिसको रद्द कराने के लिये एक कमेटी भी बनी थी।
दिगम्बरात्व और दिगम्बर मुनि
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