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________________ क्या प्रत्येक देश का जैनी इन मान्यताओं का अनुयायी मिलेगा। अतः इसमें सन्देह नहीं कि पार्को पोलो को जो नंगे-साधु मिले थे, वह जैन साधु ही थे। अलबेरुनी के आधार पर रशीददीन नामक मुसलमान लेखक ने लिखा है कि "मालाबार के निवासी सब ही श्रमण हैं और मूर्तियों की पूजा करते हैं। समुद्र किनारे के सिन्दबूर, फकनूर, मजरूर, हिली, सदर्स, जंगलि और कुलप नायक नगरों और देशों के निवासी भी "श्रमण" है।' यह लिखा ही जा चुका है कि दिगम्बर मनि श्रमण के नाम से भी विख्यात हैं। अतः कहना होगा कि रशीदुद्दीन के अनुसार मालाबार आदि देशों के निवासी दिगम्बर जैहो और गाजर का इन स्वाभाविक है। मुगल साम्राज्य में दिगम्बर मुनि - तदोपरान्त सन् १५२६ से १७६१ ई. तक भारत पर मुगल और सूरवंशों के राजाओं ने राज्य किया था। उनके समय में भी दिगम्बर मुनियों का बाहुल्य था। पाटोदी (जयपुर) के पन्दिर के वि.सं. १५७५ की ग्रंथ प्रशस्ति से प्रकट है कि उस समय श्रीचन्द्र नामक मुनि विद्यमान थे। लखनऊ चौक के जैन मन्दिर में विराजमान एक प्राचीन गुटका के पत्र १६३ पर दी हुई प्रशस्ति से निग्रंथाचार्य श्री माणिक्यचन्द्रदेव का अस्तित्व सं. १६११ में प्रमाणित है।" "भावत्रिभंगी" की प्रशस्ति से सं. १६०५ में मुनि क्षेमकीर्ति का होना सिद्ध है।" सचपुच बादशाह बाबर, हुमायू और शेरशाह के समय में दिगम्बर मुनियों का विहार सारे देश में होता था। मालूम होता है कि उन्हीं का प्रभाव मुसलमान दावेशों पर पड़ा था; जिसके फलम्वरूप वे नग्न रहने लगे थे। मुगल बादशाह शाहजहाँ के सपय में वे एक बड़ी संख्या में मौजूद थे। शेरशाह के समय में दिगम्बर मुनियों का निर्बाध विहार होता थाः यह बात शेरशाह के अफसर मलिक मुहम्मद जायसी के प्रसिद्ध हिन्दी काव्य "पद्मावत" (२।६०) के निम्नलिखित पद्य से स्पष्ट है - "कोई ब्रह्मचारज पन्थ लागे। कोई सुदिगंवर आछा लागे।" १. Rashiundin trom Al-Biruni wrilcs :"The whole country (of Malabar) produces the pan... The people are all sumanis and worship idols of the cities of the shorc thu Cirst is Sindalur the Fuknur then the country of Sudarsa then Jangli, then Kulam, The men of all these countries are Siminis - Etliot Votinine इलियट सा, ने इन श्रमणों को बौद्ध लिखा है, किन्तु उस समय दक्षिण भारत में बौद्धों का होना असम्भव है। श्रमप्य शब्द बौद्ध भिक्षु के अतिरिक्त दिगम्बर साधुओं के लिये भी व्यबहत होता है। २.Oxford... 151, ३. "श्री संघाचार्थसत्कवि शिष्येण श्रीचन्द्रमुनि।" - जैमि., वर्ष २२, अंक ४५, पृ. ६९८ ४. सं. १६११ चैत्र सु. २ मूलसंधै भ. विद्यानंदितत्पट्टे श्री कल्याणकीर्ति तत्पट्टे नेग्रंथाचार्य तपोबललब्धातिशय श्री माणिकचन्द्रदेवाः।" - जैमि., वर्ष २२, अंक ४८, १७४० ५. "सं. १६०५ वर्षे तत्शिष्य सर्वगुणविराजमान मंडलाचार्य मुनि श्री क्षेमकीर्तिदेवा।" ६. Bernier. pp. 315-318 दिगम्वरत्व और दिगम्बर पनि - - (153)
SR No.090155
Book TitleDigambaratva Aur Digambar Muni
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherDigambar Jain Sarvoday Tirth
Publication Year
Total Pages195
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size4 MB
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