SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 157
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अकबर और दिगम्बर मुनि - बादशाह अकबर जलालुद्दीन स्वयं जैनों का परम भक्त था और यदि हम उस समय के ईसाई लेखकों के कथन को मान्यत दें तो कह सकते हैं कि वह जैन धर्म में दीक्षित हो गया था। निस्सन्देह श्वेताम्बराचार्य श्री हीरविजयसूरि आदि का प्रभाव उस पर विशेष पड़ा था।' इस दशा में अकबर दिगम्बर साधुओं का विरोधी नहीं हो सकता बल्कि अबुल फजल ने "आईन-ए-अकबरी" भाग ३, पृष्ठ ८७ में उनका उल्लेख स्पष्ट शब्दों में किया है और लिखा है कि वे नंगे रहते हैं। वैराट का दिगम्बर संघ- वैराट नगर में उस समय दिगम्बर मुनियों का संघ विद्यमान था। वहाँ पर साक्षात् मोक्षमार्ग की प्रवृत्ति के लिये यथाजात जिनलिंग शोभा पा रहा था। यह नगर बड़ा समृद्धिशाली था और उस पर अकबर शासन करता था। कवि राजमल्ल ने “लाटीसंहिता" को रचना यहीं के जैन मन्दिर में की थी। २ उन्होंने अपने “जम्बूस्वामी चरित" में लिखा है कि भटानियाकोल के निवासी साहु टोडर जब तीर्थयात्रा करते हुये मथुरा पहुंचे तो उन्होंने वहाँ पर ५१४ दिगम्बर मुनियों के समाधि सूचक प्राचीन स्तूपों को जीर्ण-शीर्ण दशा में देखा। उन्होंने उनका जीर्णोद्धार करा दिया और उनकी प्रतिष्ठा शुभ तिथिवार को चतुर्विधसंघ - (१) मुनि, (२) आर्यिका (३) श्रावक, (५) श्राविका एकत्र करके कराई थी। इन उल्लेखों से कि पादाह अवतार के राज्य में ओक दिगम्बर मुनि विद्यमान थे और उनका निर्बाध विहार सारे देश में होता था । ३ - बादशाह औरंगजेब ने दिगम्बर मुनि का सम्मान किया था- अकबर के बाद मुगल खानदान में जितने भी शासक हुये उन सब के ही शासनकाल में दिगम्बर मुनियों का अस्तित्व मिलता है। औरंगजेब सदृश कट्टर बादशाह को भी १. पादरी पिन्हेरो (Pinheiro) ने लिखा है कि अकबर जैन धर्मानुयायी है। [He (Akbar) follows the sect of the Jainas] - सूस. पू. १७१-३९८ २. वीर, वर्ष ३, पृ. बलाटी., पृ. ११ । • "श्रीमडि डडीरपिण्डोपमितमित्तनभः पाण्डुराखण्डकोत्तर्या, कुष्टं ब्रह्माण्डकाण्डं निजभुजयशसा मण्डपाडम्बरोऽस्मिन् । येनासौ पातिसाहिः प्रतपदकबर प्रख्यविख्यातकीर्ति - जयाद् भोक्तनाथ नाथः प्रभुरीति नगरस्यायस्य वैरारनाम्नः || ६ || जैनो धर्मोनवद्यो जगति विजयतेऽद्यापि सन्तानवर्ती साक्षाद्दैगम्बरास्ते यतथ इह यथा जातरूपकलक्षः । तस्मै तेभ्यो नमोस्तु त्रि समयनियतं प्रोल्लसत्प्रसादादगावर्द्धमानं प्रतिधविरहितो वर्तते मोक्षमार्गः ||६३ || ३. अनेकान्त पा. १, पृ. १३९ - १४१ “चतुर्विधमहासंघ समाहूयान धीमता । " (154) — दिगम्बरत्व और दिगम्बर पुलि
SR No.090155
Book TitleDigambaratva Aur Digambar Muni
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherDigambar Jain Sarvoday Tirth
Publication Year
Total Pages195
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy