SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 148
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ [२४] विदेशों में दिगम्बर मुनियों का विहार 'India had pre-eminently been the cradle of culture and it was from this country that other nations had understood even the rudiments of culture. For example, they were told, the Buddhistic missionaries and Jaina monks wentforth to Greece and Rome and to places as far as ,1 Norwary and had spread their culture." -Prol. M.S.Ramaswamy Iyengar २ जैन पुराणों के कथन से स्पष्ट है कि तीर्थकरों और श्रमणों का विहार समस्त आर्यखंड में हुआ था। वर्तमान की जानी हुई दुनिया का समावेश आर्यखंड में हो जाता है। इसलिये यह मानना ठीक है कि अमेरिका, यूरोप, एशिया आदि देशों में एक समय दिगम्बर धर्म प्रचलित था और वहां दिगम्बर मुनियों का बिहार होता था। आधुनिक विद्वान् भी इस बात को प्रकट करते हैं कि बौद्ध और जैन भिक्षुगण यूनान, रोम और नारवे तक धर्म प्रचार करते हुये पहुंचे थे। किन्तु जैनपुराणों के वर्णन पर विशेष ध्यान न देकर यदि ऐतिहासिक प्रमाणों पर ध्यान दिया जाय, तो भी यह प्रकट होता है कि दिगम्बर मुनि विदेशों में अपने धर्म का प्रचार करने को पहुंचे थे। भगवान् महावीर के बिहार के विषय में कहा गया है कि वे आकनीय, वृकार्थप, वाल्हीक, यवनश्रुति, गांधार क्वाथतोय, ताण और कार्ण देशों में भी धर्म प्रचार करते हुये पहुंचे थे। ये देश भारतवर्ष के बाहर ही प्रकट होते हैं। आकनीय संभवतः आकसीनिया ((xiania) है। यवनश्रुति यूनान अथवा पारस्य का द्योतक हैं। बाल्होक बल्ख (Balkh) है। गाँधार कंधार है। क्वाथतोय रेड- सी (Red Sea) के निकट के देश हो सकते है। तार्ण कार्ण तूरान आदि प्रतीत होते हैं। इस दशा में कंधार यूनान, मिश्र आदि देशों में भगवान् का बिहार हुआ मानना ठीक है । ५ Y सिकन्दर महान् के साथ दिगम्बर मुनि कल्याण यूनान के लिये यहाँ से प्रस्थानित हो गये थे और एक अन्य दिगम्बराचार्य यूनान धर्म प्रचारार्थ गये थे, यह पहले लिखा जा चुका है। यूनानी लेखकों के कथन से बैक्ट्रिया (Bactria) और १. The "Hindu" of 25th July 1919 & JG.XV.27 २. भा. १५६ - १५७ । ३. हरिवंशपुराण, सर्ग ३, श्लो. ३७ । ४. बीर, वर्ष ९ अंक ७ ५. संजैइ., भा २, पृ. १०२-१०३ । दिगम्बरत्व और दिगम्बर मुनि (145)
SR No.090155
Book TitleDigambaratva Aur Digambar Muni
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherDigambar Jain Sarvoday Tirth
Publication Year
Total Pages195
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy