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________________ इथ्यूपिया (Ethiopia) नामक देशों में श्रमणों के विहार का पता चलता है। ये श्रमणगण दिगम्बर जैन ही 4, क्योंकि पौद्ध प्रमाण रो काम अलोक के सारान्त विदेशों में पहुंचे थे। __ अफ्रीका के मिश्र और अबीसिनिया देशों में भी एक सपय दिगम्बर मुनियों का विहार हुआ प्रकट होता है, क्योंकि वहाँ की प्राचीन मान्यता में दिगम्बरत्व को विशेष आदर मिला प्रमाणित है। मिश्र में नग्न मूर्तियाँ भी बनी थी और वहाँ की कुमारी सेंटमेरी (St. Mary) दिगम्बर साधु के वेष में रही थी। मालूम होता है कि रावण की लंका अफ्रीका के निकट ही थी और जैनपुराणों से यह प्रकट ही हैं कि वहाँ अनेक जेन मन्दिर और दिगम्बर मुनि थे। यूनान में दिगम्बर मनियों के प्रचार का प्रभाव काफी हआ प्रकट होता है। वहाँ के लोगों में जैन मान्यताओं का आदर हो गया था। यहाँ तक कि डायजिनेस (Diogenes) और संभवतः परहो (Pyrrho of Elis) नामक यूनानी तत्ववेत्ता दिगम्बर वेष में रहे थे। पैर्रहो ने दिगम्बर मुनियों के निकट शिक्षा ग्रहण की थी। यूनानियों ने नग्न मूर्तियाँ भी बनाई थी, जैसे कि लिखा जा चुका है। जब यूनान और नारवे जैसे दूर के देशों में दिगम्बर मुनिगण पहुंचे थे, तो भला मध्य-एशिया के अरब ईरान और अफगानिस्तान आदि देशों में वे क्यों न पहुँचते।? सचमुच दिगम्बर मनियों का बिहार इन देशों में एक समय में हुआ था। मौर्य सम्राट सम्प्रति ने इन देशों में जैन श्रमणों का विहार कराया था, यह पहले हो लिखा जा चुका है। मालूम होता है कि दिगम्बर मुनि अपने इस प्रयास में सफल हुये थे, क्योंकि यह पता चलता है कि इस्लाम मजहब की स्थापना के समय अधिकांश जैनी अरब छोड़कर दक्षिण भारत में आ बसे थे' तथा ह्वेनसांग के कथन से स्पष्ट है कि ईस्वी सातवीं तक दिगम्बर मुनिगण अफगानिस्तान में अपने धर्म का प्रचार करते रहेथे। दिगम्बर मुनियों के धर्मोपदेश का प्रभाव इस्लाम-मज़हब पर बहुत-कुछ पड़ा प्रतीत होता है। दिगम्बरत्व के सिद्धान्त का इस्लाम-पज़हब में मान्य होना इस बात का साबूत है। अरबी कवि और तत्ववेत्ता अबु-ल-अला (Abu-L-Ala; १. Al.p.104 ३. AR.111.p.6 व जैन होस्टल मैगजीन, भाग ११, पृ.६। ३. भपा.,पृ.१६०-२०२।। %. N.J.Intro., p.2 & "Diogenes Lacrlius (IX 61 & 63) refers to the Gymnosophists and asserts that Pyrcho of Elis. the found Sccpticism came under their insluence and on his rcturn to Elis imitated their habits of lifc.' E.B.X11,753 ५. AR,1X.284 ६.हुभा,,पृ.३७ (145) दिगम्बरत्व और दिगम्बर मुनि
SR No.090155
Book TitleDigambaratva Aur Digambar Muni
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherDigambar Jain Sarvoday Tirth
Publication Year
Total Pages195
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size4 MB
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