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महाकवि मुनि श्री श्रुतकीर्ति - उक्त समय के एक अन्य शिलालेख में मुनि देवकीर्ति को गुरु परम्परा रही है, जिसमे प्रकट है कि पुनि कनकनन्दि और देवचंद्र की भ्राता श्रुतकीर्ति त्रैविध पुनि ने देवेन्द्र सदृश विपक्षवादियों को पराजित किया था और एक चमत्कारी काव्य राधव-पांडवोय की रचना की थी, जो आदि से अन्त को व अन्त से आदि को दोनों ओर पढ़ा जा सके। इससे प्रकट है कि उपयुक्त मुनि देवकीर्ति के शिष्य यादव- नरेश नारसिंह प्रथम के प्रसिद्ध सेनापति और मंत्री हुल्लप थे।'
श्री शथचन्द्र और रानी जवक्कणव्वे- शक सं. १०९९ के लेख में मंत्री नागदेव के गुरु श्री नयकीर्ति योगीन्द्र व उनको गुरु परंपरा का उल्लेख है। शक सं. १०४५ लेख से प्रकट है कि होयसाल महाराज गंग नरेश विष्णवर्द्धन ने अपने गुरु शुभचंद्रदेव की निषद्या निर्माण कराई थी। इनकी भावज जवक्कणव्वे को जैन धर्म में दृढ़ श्रद्धा थी और वह दिगम्बर मुनियों को दानादि देकर सत्कार किया करती थी।' उनके विषय में निम्न प्रकार का उल्लेख किया है -
"दोरेये जक्कणिकव्वेगी मुवनदोल् चारित्रदोल् शोलदोल् परमश्रीजिनपूजेयौल् सकलदानाश्चर्यदोल् सत्यदोल। गुरुपादाम्बुजभक्तियोल विनयदोल भव्यर्कलंकन्ददा
दरिदं मुन्निसुतिर्प पेम्पिनेडेयोल् पत्तन्यकान्ताजनम् ।।" श्री गोल्लाचार्य प्रभृत अन्य दिगम्बराचार्य - शक सं. १०३७ के लेख में है कि मुनि त्रैकाल्य योगी के तप के प्रभाव से एक ब्रह्मराक्षस उनका शिष्य हो गया था। उनके स्मरण मात्र से बड़े-बड़े भूत भागते थे। उनके प्रताप से करंज का तेल धृत में परिवर्तित हो गया था। गोल्लाचार्य मुनि होने के पहले गोल्ल देश के नरेश थे। नूल चन्दिल नरेश के वंश के चूडामणि थे। सकलचन्द्रमुनि के शिष्य मेघचंद्र विद्य थे। जो सिद्धान्त में बोरसेन तक में अकलंक और व्याकरण में पूज्यपाद के समान विद्वान थे। शक सं. १०४४ के लेख में दण्डनायक गंगराज की धर्मपत्नी लक्ष्मीमति के गुण, शील और दान की प्रशंसा है। वह दिगम्बराचार्य श्री शुभचन्द्र जी की शिष्या थी। इन्ही आचार्य की एक अन्य धर्मात्मा शिष्या राजसम्मानित चापुण्ड को स्त्री देवमति थी। शक सं. १०६८ के लेख में अन्य दिगम्बर मुनियों के साथ श्री शुभकीर्ति आचार्य का उल्लेख है, जिनके सम्मुख बाद में बौद्ध मीमांसकादि कोई भी नहीं ठहर सकता था। इसी में प्रभाचन्द्र जी को शिष्या, विष्णुवर्द्धन नरेश की पटरानी शांतलदेवी की धर्मपरायणता का भी उल्लेख है।
१. bid. pp.24-30 २. Ibid. pp. 33-42. ३. Ibid. pp.43-49. ४. Ibid. pp.5x6-66. ५. Ibid, pp.67-70 ६. Ibid. pp. 40-81.
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दिगम्बरत्व और दिगम्बर मुनि