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________________ एक का परिचय हम यहाँ पर अंकित करना उचित समझते हैं। अकेले श्रवणबेलगोल में ही इतने अधिक शिलालेख हैं कि उनका सम्पादन एक बड़ी पुस्तक में किया गया है। अस्तु श्रवणबेलगोल के शिलालेखों में प्रसिद्ध दिगम्बर साधुगण- पहले श्रवण बेलगोल के शिलालेखों से हो दिगम्बर मुनियों का महत्व प्रमाणित करना श्रेष्ठ हैं। शक सं. ५२२ के शिलालेखों से वहाँ पर श्रुतकेवली भद्रबाहु और मौर्य सम्राट् चन्द्रगुप्त का परिचय मिलता है। इन दोनों महानुभावों ने दिगम्बर-वेष में श्रवण-बेलगोल को पवित्र किया था।' शक सं. ६२२ के लेख में पौनिगुरु की शिष्या नागमति को तीन मास का व्रत धारण करके समाधिमरण करते लिखा है। इसी समय के एक अन्य लेख में चरितश्री नामक मनि का उल्लेख है।'धर्मसेन, बलदेव, पट्टिनिगुरू, उग्रसेन गुरु, गुणसेन, पेरुभालु, उल्लिकल, तीर्थद, कुलापक आदि दिगम्बर मुनियों का अस्तित्व भी इसी समय प्रमाणित हैं। शक सं. ८९६ के लेख से प्रकट है कि गंगराजा पारसिंह ने अनेक लड़ाइयाँ लड़कर अपना भुजविक्रम प्रकट किया था और अतं में अजितसेनाचार्य के निकट बंकापुर में समाधिमरण किया था। ___ तार्किकचक्रवर्ती श्री देवकीर्ति-शक संवत् १०८५ के लेख से तार्किकचक्रवर्ती श्री देवकीर्ति मुनि का तथा उनके शिष्य लक्खनन्दि, माधवेन्दु और त्रिभुवनमल्ल का पता चलता है। उनके विषय में कहा गया है “कुर्नेगाः कपिल-बादिलनोग-सन्हये। चावकि-वादि-मकराकर-वाडवाग्नये। बौद्धप्रवादितिमिरप्रविभेदभानवे. श्री देवकीर्तिमुनये कविवादिवाग्मिने।।" "चतुम्मुख चतुर्वक्त निर्गमागपदुस्सहा! देवकीर्तिमुखाम्भोजे नृत्यत्तीति सरस्वती।।" सचमुच मुनि देवकीर्ति जी अपने समय के अद्वितीय कवि, तार्किक और वक्ता थे। वे महामण्डलाचार्य और विद्वान थे और उनके समक्ष सांख्यिक, चार्वाक, नैयायिक, वेदान्ती, बौद्ध आदि सभी दार्शनिक हार मानते थे।"५ १. जैशिस. पृ.१-२॥ २. [bid p-3. ३. bid pr 1-18 ४. Ibid P.0. ५.जैशिसं., पृ.२३-२४।। दिगम्बात्व और दिगम्बर मुनि (137)
SR No.090155
Book TitleDigambaratva Aur Digambar Muni
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherDigambar Jain Sarvoday Tirth
Publication Year
Total Pages195
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size4 MB
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