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________________ कलकत्ता की पूर्तियों और दिगम्बर मुनि - यहीं के एक अन्य सम्यक ज्ञान यंत्र के लेख से विदित होता है कि सं. १६३४ में बिहार में भगवान धर्मचन्द्र जो के शिष्य मनि श्री बाहन्दि का बिहार और धर्मप्रचार होता था।' . एटा, इटावा और मैनपुरी के पुरातत्व में दिगम्बर मुनि- कुरावली (मैनपुरी) के जैन मन्दिर में विराजमान सम्यग्दर्शन यंत्र पर के लेख से प्रकट है कि सं. १५७८ में मुनि विशालकीर्ति विद्यमान थे। उनका विहार संयुक्त प्रान्त में होता था।' अलीगंज (एटा) के लेखों से मुनि माधनंदि और मनि धर्मचन्द्र जी का पता चलता है।' इटावा नशियाँजी पर कतिपय जैन स्तूप हैं और उन पर के लेख से यहाँ अठारहवीं शताब्दी में पनि विजयसागर जी का होना प्रमाणित होता है। उधर पटना के श्री हरकचंद वाले जैन मन्दिर में सं. १९६४ की बनी हुई दिगम्बर मुनि की काष्ठमूर्ति विद्यमान है।५।। सारांशतः उत्तर भारत और महाराष्ट्र में प्राचीनकाल से बरावर दिगम्बर मुनि होते आये हैं, यह बात उक्त पुरातत्व विषयक साक्षी से प्रमाणित है। अब यह आवश्यक नहीं है कि और भी अनगिनत शिलालेखादि का उल्लेख करके इस व्याख्या को पुष्ट किया जाय। यदि सब ही जैन शिलालेख यहाँ लिखे जायें तो इस ग्रंथ का आकार-प्रकार तिगुना-चौगुना बढ़ जायेगा, जो पाठकों के लिये अरुचिकर होगा। दक्षिण भारत का पुरातत्व और दिगम्बर मुनि- अच्छा तो अब दक्षिण भारत के शिलालेखादि पुरातत्व पर एक नजर डाल लीजिये। दक्षिण भारत की पाण्डवमलय आदि गफाओं का परातत्व एक अति प्राचीन काल में वहाँ पर दिगम्बर मुनियों का अस्तित्व प्रमाणित करता है। अनुमनामलें (ट्रावनकोर) की गुफाओं में दिगम्बर मुनियों का प्राचीन आश्रम था। वहाँ पर दीर्घकाय दिगम्बर मुर्तियाँ अंकित हैं। दक्षिण देश के शिलालेखों में मदूरा और रामनंद जिलों से प्राप्त प्रसिद्ध ब्राह्मीलिपि के शिलालेख अति प्राचीन हैं। वह अशोक की लिपि में लिख हये हैं। इसलिये इनको ईस्वी पूर्व तीसरी शताब्दि का सपझना चाहिये। यह जैन मन्दिरों के पास बिखरे हये मिले हैं और इनके निकट ही तीर्थकरों की नग्न पर्तियाँ भी थीं। अतः इनका सम्बन्ध जैन धर्म से होना बहुत कुछ संभव हैं। इनसे स्पष्ट है कि ईस्वी पूर्व तीसरी शताब्दि से ही जैन मुनि दक्षिण भारत में प्रचार करने लगे थे। इन शिलालेखों के अतिरिक्त दक्षिण भारत में दिगम्बर मुनियों से सम्बन्ध रखने वाले सैंकड़ों शिलालेख हैं। उन सबको यहाँ उपस्थित करना असम्भव हैं। हाँ, उनमें कुछ १. जैयप्रयलें सं., पृ. २६। २. प्राजेलेसं, पृ. ४६। 3. Ibid. p. 6o ४. lhid. pp. 90&91. 4. Mr. Ajitaprasada. Advaxcale, lucknow reports. "Patna Jais temple renovaled in 1944 V.S. by daughter in law or llarahchand. On the entrancu duor is the lifc-tize image in wood of a mul with u Kumandal in the right hand & the brokca end of what must have hcen a Pichi in tlic kr. ६. SSIJ. PL.I. pp.35. दिगम्बरत्व और दिसम्बर मुनि (13)
SR No.090155
Book TitleDigambaratva Aur Digambar Muni
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherDigambar Jain Sarvoday Tirth
Publication Year
Total Pages195
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size4 MB
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