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________________ थे, जिनके एक शिष्य सैद्धान्तिक नेमिचन्द्र थे। श्री नेमिचन्द्र के शिष्य शुभचन्द्र थे, जिन्होंने दिगम्बर धर्म की उन्नति की थी। उनके शिष्य 'श्री ललितकीर्ति थे। बेलगाम जिले में स्थित रायबाग ग्राम में भी एक जैन शिलालेख राट्टराजा कार्तवीर्य का है। उससे विदित है कि कार्तवीर्य ने भगवान रामचन्द्र जी को शाका ११२४ में राष्ट्रों के उन जैन पन्दिरों के लिये दान दिया था। इससे चन्द्रिकादेवी का दिगम्बर मुनियों और तीर्थंकरों का भक्त होना प्रकट है। बीजापुर क्लेि की गर्मियों दिगम्बर मनियों की द्योतक - बोजापुर के किले की दिगम्बर मूर्तियां सं. १००१ में श्री विजयसूरी द्वारा प्रतिष्ठित हैं। उनसे प्रकट है कि बीजापुर में उस समय दिगम्बर मुनियों की प्रधानता थी। तेवरी की दिगम्बर मूर्ति - तेवरी (जबलपुर) के तालाब में स्थित दिगम्बर जैन मन्दिर की मूर्ति पर बारहवीं शताब्दि का लेख है कि "मानादित्य की स्त्री रोज नपन करती हैं। इससे वहाँ पर जैन मुनियों का राजमान्य होना प्रकट है। दिल्ली के लेखों में दिगम्बर मुनि - दिल्ली नया मन्दिर कटघर की मूर्तियों पर के लेख १५ वीं शताब्दि में वहाँ दिगम्बर पनियों का अस्तित्व प्रकट करते हैं। श्री आदिनाथ की मूर्ति पर लेख है कि “सं.१४२८ ज्येष्ठ सुदी १२ सोमवासरे काष्ठासंघे माथुरान्वये भ. श्रीदेवसेनदेवास्तस्पट्टे त्रयोदशविधचारित्रेनालंकृताः सकल विपल मुनिमंडली शिष्यः शिखापण्णयः प्रतिष्ठाचार्यवर्य श्री विमलसेन देवास्तेषामुपदेशेन जाइसवालान्वयें सा, पुइपति। इत्यादि।" इन्हीं मुनि विमलसेन की शिष्या आर्यिका पुणश्री विमल श्री थी, यह बात उसी मन्दिर की एक अन्य मूर्ति पर के लेख से प्रकट है। लखनऊ के मूर्ति-लेख में निग्रंथाचार्य - लखनऊ चौक के जैन मन्दिर में विराजमान श्री आदिनाथ की मूर्ति पर के लेख से विदित है कि सं. १५०३ में श्री भगवान सकलकीर्ति जी के शिष्य श्री निग्रंथाचार्य विमलकीर्ति थे, जिनका उपदेश और बिहार चहुं ओर होता था। ____चावलपट्टी (बंगाल) के जैन पन्दिर में विराजमान दशधर्म यंत्रलेख से प्रकट है कि सं. १५८६ में आचार्य श्री रत्नकीर्ति के शिष्य मुनि ललितकीर्ति विद्यमान थे जिनकी भक्ति भ्रमरीबाई करती थी। १. pp. 82-83. २. Ibid. p.87. ३. Ibid. p. 108. ४. दिजैडा, पृ. २८७। ५. जैप्रयलें सं., पृ. २५। दिगम्बरत्व और दिगम्बर मुनि (135) :
SR No.090155
Book TitleDigambaratva Aur Digambar Muni
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherDigambar Jain Sarvoday Tirth
Publication Year
Total Pages195
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size4 MB
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