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पृथ्वीराज और सोमेश्वर ने जैन मन्दिर के लिये ग्राम भेंट किये थे।' सारांशतः बिजोलिया में एक समय दिगम्बर मुनि प्रभावशाली हो गये थे।
अंतरी की गुमकाओं में विशाबर मुजि - अंजनेरी और अंकई (नासिक जिला) को जैन गुफायें वहाँ पर १२ वी १३ वीं शताब्दि में दिगम्बर मुनियों के अस्तित्व को प्रकट करती हैं। पांडु लेना गुफाओं का पुरातत्व भी इसी बात का समर्थक है।
बेलगाम के पुरातत्व और राजपान्य दिगम्बर मुनि - बेलगाम का पुरातत्व वहाँ पर १२वी १३वीं शताब्दि में दिगम्बर मुनियों के महत्व को प्रकट करते हैं, जो राज मान्य थे। यहाँ के राट्ट राजाओं ने जैन पुनियों का सम्मान किया था, यह उनके लेखों से प्रकट है।
सन् १२०५ के लेख में वर्णन है कि बेलगाम में जब राट्टराजा कीर्तिवर्मा और मल्लिकार्जुन राज्य कर रहे थे तब श्री शुभचन्द्र भट्टारक की सेवा में राजा बोचा के बनाये गये राष्ट्रों के जैन मंदिर के लिये भूमिदान किया गया था। एक दूसरा लेख भी इन्हीं राजाओं द्वारा शुभचन्द्र जी को अन्य भूमि अर्पण किये जाने का उल्लेख करता है। इसमें कार्तवीर्य की रानी का नाम पद्मावती लिखा है। सचमुच उस समय वहाँ पर दिगम्बर मुनियों का काफी प्रभुत्व था।
बेलगामान्तर्गत कोनूर स्थान से भी सट्टराजा का एक शिलालेख शाका १००९ का मिला है, जिसका भाव है कि “चालुक्यराजा जयकर्ण के आधीन राट्टराज मण्डलेश्वर सेन कोनूर आदि प्रदेशों पर राज्य करता था, तब बलात्कारगण के वंशधरों को इन नगरों का अधिपति उसने बना दिया था। यहाँ के जैन मन्दिरों को चालुक्य राजा कोन व जयकर्ण द्वारा दान दिये जाने का उल्लेख मिलता है। * इनसे दिगम्बर मुनियों का महत्व स्पष्ट है।
बेलगाम जिले के कलहोले ग्राम में एक प्राचीन जैन मन्दिर है, जिसमें एक शिलालेख राट्टराजा कार्तवीर्य चतुर्थ और पल्लिकार्जुन का लिखाया हुआ मौजूद है। उसमें श्री शांतिनाथ जी के मन्दिर को भूमिदान देने का उल्लेख है। मन्दिर के गरु श्री मूलसंघ कुन्दकुन्दाचार्य की शाखा हणसांगी वंश के थे। इस वंश के तीन गुरु मलधारी
१. राइ., पृ. ३६३। २. यंप्राजैस्मा., पृ. ५७-५९ | ३, बंप्राजेस्मा.., पृ.७४-७५ | ४. Iljid, pp. 882-81.
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दिगम्बरत्व और दिगम्बर मुनि