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झालरापाटन में दिगम्बर मुनियों की निषिधिकायें
झालरापाटन
शहर के निकट एक पहाड़ी पर दिगम्बर मुनियों के कई समाधि स्थान हैं। उन पर के लेखों से प्रकट है कि सं. १०६६ में श्री नेमिदेवाचार्य और श्री बलदेवाचार्य ने समाधिमरण किया था।
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अलवर राज्य के लेखों में दिगम्बर मुनि - अलवर राज्य के नौगमा ग्राम में स्थित दिगम्बर जैन मन्दिर में श्री अनन्तनाथ जो की एक कायोत्सर्ग मूर्ति है, जिसके आसन पर लिखा है कि सं. १९७५ में आचार्य विजयकीर्ति के शिष्य नरेन्द्रकीर्ति ने उसकी प्रतिष्ठा की थी।
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देवगढ़ (झांसी) के पुरातत्व में दिगम्बर पुनि-देवगढ़ (झांसी) का पुरातत्व वहाँ तेरहवीं शताब्दि तक दिगम्बर मुनियों के उत्कर्ष का द्योतक है। नग्न मूर्तियों से सारा पहाड़ ओतप्रोत है। उन पर के लेखों से प्रकट है कि ११वीं शताब्दि में वहाँ एक शुभदेवनाथ नामक प्रसिद्ध मुनि थे। सं. १२०९ के लेख में दिगम्बर गुरुओं को भक्त आर्यिका धर्मश्री का उल्लेख है। सं. १२२४ का शिलालेख पण्डित मुनि का वर्णन करता है। सं. १२०७ में वहाँ आचार्य जयकीर्ति प्रसिद्ध थे। उनके शिष्यों में भावनन्दि मुनि तथा कई आर्यिकायें थीं। धर्मनन्दि, कमलदेवाचार्य, नागसेनाचार्य व्याख्याता माघनन्दि, लोकनन्दि और गुणनन्दि नामक दिगम्बर मुनियों का भी उल्लेख मिलता है। नं. २२२ की मूर्ति मुनि आर्यिका श्रावक श्राविका इस प्रकार चतुर्विधसंघ के लिये बनी थी। गर्ज यह कि देवगढ़ में लगातार कई शताब्दियों तक दिगम्बर मुनियों का दौरदौरा रहा था।
बिजौलिया (मेवाड़) में दिगम्बर साधुओं की मूर्तियाँ- बिजोलिया (पार्श्वनाथ - मेवाड़) का पुरातत्व भी वहाँ पर दिगम्बर मुनियों के उत्कर्ष को प्रकट करता है। वहाँ पर कई एक दिगम्बर पुनियों की नग्न प्रतिमायें बनी हुई हैं। एक मानस्तम्भ पर तीर्थकरों की मूर्तियों के साथ दिगम्बर पुनिगण के प्रतिबिम्ब व चरणचिन्ह अंकित हैं। दो मुनिराज शास्त्रस्वाध्याय करते प्रकट किये गये हैं। उनके पास कमंडल, पिच्छी रखे हुए हैं। वे अजमेर के चौहान राजाओं द्वारा मान्य थे। शिलालेखों से प्रकट है कि वहाँ पर श्री मूलसंघ के दिगम्बराचार्य श्री बसन्तकीर्तिदेव, विशालकीर्तिदेव, मदनकीर्तिदेव, धर्मचन्द्रदेव, रत्नकीर्तिदेव, प्रभाचन्द्रदेव, पद्मनन्दिदेव और शुभचन्द्रदेव विद्यमान थे।" इनको चौहान राजा
१.[bid. p. 191. २. [hid p. 195. ३. देजे., पृ. १३- २५ | ४. दिजैडा, पृ. ५०१ ।
५.
मप्र जैस्मा, पृ. ११३ |
दिगम्बरत्व और दिगम्बर भुनि
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