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________________ बड़ा-विद्वान था। इसने नगर के व्यापारियों को सम्मति से १००० पान के वृक्षों के खेत को सेनवंश के आचार्य कनकसेन की सेवा में जैन मन्दिर के लिये अर्पण किया था। कनकमेनाचार्य के गुरु श्री वीर सेन स्वामी थे, जो पूज्यपाद कुमार सेनाचार्य के दिगम्बर मनियों के संघ के गुरु थे। चन्द्रनाथ मन्दिर के शिलालेख से मूलगुंड के राजा मदरसा की स्त्री भामती को मृत्यु का वर्णन प्रकट है। ' गर्ज यह है कि मूलगुंड से दिगम्बर मुनियों को एक समय प्रधान पद मिला हुआ था-वहाँ का शासक भी उनका भक्त था। सन्दी के शिलालेखों में गजाय दिगम्बर मुनि - सुन्दी (धारवाड़) के जैन मन्दिर विषयक शिलालेख (१० वीं श.) में पश्चिमीय गंगवंशीय राजकुमार बुटुग का वर्णन है, जिसने उस जैन मन्दिर के लिये दिगम्बर गुरु को दान दिया था जिसको उसकी स्त्री दिवलम्बा ने सुन्दी में स्थापित किया था। राजा बुटुग गंगपण्डल पर राज्य करता था और श्री नागदेव का शिष्य था। रानो दिवलम्बा दिगम्बर मुनियों और आर्यिकाओं को परम भक्त थी। उसने छह आर्यिकाओं को समाधिमरण कराया था। इससे सुन्दी में दिगम्बर मुनियों का राजपान्य होना प्रकट है। कुम्भोज बाहुबलि पहाड़ (कोल्हापुर) श्री दिगम्बर मुनि बाहुबुलि के कारण प्रसिद्ध है, जो वहाँ हो गये हैं और जिनकी चरण पादुका वहाँ मौजूद है। कोल्हापुर के पुरातत्त्व में दिगम्बर मुनि और शिलाहार राजा - कोल्हापुर का पुरातत्व दिगम्बर मुनियों के उत्कर्ष का द्योतक है। वहाँ के इरविन म्यूजियम में एक शिलालेख शाका दसवीं शताब्दी का है, जिससे प्रकट है कि दण्डनायक दासीमरस ने राजा जगदेकपल्ल के दूसरे वर्ष के राज्य में एक ग्राम धर्मार्थ दिया था। उस समय यापनीय संघ पुत्रागवृक्षमूलगण राद्धान्तादि के ज्ञाता परम विद्वान पुनि कुमार कीर्तिदेव विराजित थे। तदोपरान्त कोल्हापुर के शिलाहार वंशी राजा भी दिगम्बर मुनियों के परम भक्त थे। वहाँ के एक शिलालेख से प्रकट है कि "शिलाहारवंशीय महामण्डलेश्वर विजयादित्व ने माघ सुदी १५ शाका १०६५ को एक खेत और एक मकान श्री पार्श्वनाथ जी के मन्दिर में अष्टद्रव्य पूजा के लिये दिया। इस मन्दिर को पूलसंघ देशीयगण पुस्तक गच्छ के अधिपति श्री माघनन्दि सिद्धान्तदेव (दिगम्बराचार्य) के शिष्य सापन्त कामदेव के अधीनस्थ वासुदेव ने बनवाया था। दान के समय राजा ने श्री पाघनन्दि सिद्धान्तदेव के शिष्य माणिक्यनन्दि पं. के चरण धोये थे। “बमनी ग्राम से प्राप्त शाका १०७३ के लेख से प्रकट है कि "शिलाहार राजा विजयादित्य ने जैन मन्दिर के लिये श्री १.बंपास्मा , पृ. १२०-१२१ । २. बंधाजैस्मा,, पृ. १२७ । ३. बंप्राजैस्मा,पृ. १५३। ४. जैनमित्र, वर्ष ३३. पृ. ७१ । दिगम्बाव और दिगम्बर मुनि (131)
SR No.090155
Book TitleDigambaratva Aur Digambar Muni
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherDigambar Jain Sarvoday Tirth
Publication Year
Total Pages195
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size4 MB
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