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________________ कल्याणकारी होना प्रकट है। वहाँ की प्रायः सब ही प्राचीन मूर्तियां नान-दिगम्बर हैं। एक स्तूप के चित्र में जैन मुनि नग्न, पिच्छी व कमण्डल लिये दिखाये गये हैं। उन पर के लेख दिगम्बर मुनियों के द्योतक हैं; यथा-- "नमो अर्हतो वर्धमानस आराये गणिकायं लोण शोभिकाये धितु समण साविकाये नादाये गणिकाये वसु (ये) आर्हतो देविकुल आयाग-सभा प्रयाशिल (T) पटो पतिस्ठापितो निगन्धानम् अर्हता यतनेसहापातरे भगिनिये धितरे पुत्रेण सर्वेन च परिजनेन अहंत पुजाय। अर्थात् - "अर्हत् वर्द्धमान् को नमस्कार। श्रमणों को श्राविका आरायगणिका लोणशोभिका की पुत्री नादाय गणिका वसु ने अपनी पाता, पुत्री, पुत्र और अपने सर्व कुटुम्ब सहित अर्हत् का एक पन्दिर एक आयाग-सभा, ताल और एक शिला निग्रेथ अर्हतों के पवित्र स्थान पर बनवाये।' __इसमें दानशीला श्राविकाओं-श्रमणों-दिगम्बर मुनियों का भक्त तथा निग्रंथ दिगम्बर मुनियों के लिए एक शिला बनाया जाना प्रकट किया गया है। एक आयागपट पर के लेख में भी 'श्रमण-दिगम्बर मुनियों का उल्लेख है। प्लेट नं. २८ के लेख में भी ऐसा ही उल्लेख है तथा एक दिगम्बर मूर्ति पर निम्न प्रकार लेख ....."सं. १५, ग्रि ३, दि १ अस्या पूर्वाय..... हिका तो आर्य जयभूतिस्य शिषीनिनं अर्य सनाभिक शिषीन आर्य वसुलये (निर्वत) नं. ......... लस्य धीतु.....३..... धुवेणि श्रेष्टिस्य धर्मपत्निये भट्टिसेनस्य..... (मातु) कुमरमितयो दनं. भगवतो (प्र) मा सब्ब तो भद्रिका।" ___ अर्थात् - "(सिद्ध !) सं. १५ ग्रोष्य के तीसरे महीने में पहले दिन को, भगवत् की एक चतुर्मुखी प्रतिमा कुमरमिता के दानरूप, जोल की पुत्री, की बहू, श्रेष्टि वेणि की प्रथम पत्नी, भट्टिसेन की माता थी, पहिक कल के आर्य जयभति की शिष्या अर्य संगमिका की प्रति शिष्या वसुला की इच्छानुसार (अर्पित हुई थी)। " इसमें दिगम्बर मुनि जयभूति का उल्लेख 'आर्य विशेषण से हुआ है। ऐसे ही अन्य उल्लेखों से वहाँ का पुरातत्व तत्कालीन दिगम्बर मुनियों के सम्माननीय व्यक्तित्व का परिचायक है। अहिच्छत्र (बरेली) के पुरातत्व में दिगम्बर मुनि - अहिच्छत्र (बरेली) पर एक समय नागवंशी राजाओं का राज्य था और वे दिगम्बर जैन धर्मानुयायी थे। १. होली दरवाजा से मिला आयागपट-वीर, वर्ष ४, पृ. ३०३ । २. आर्यवती आयाग पट्ट, वीर, वर्ष ४.१.३०४ ३. JOAM..plate No. 28 ४. वीर, वर्ष४.प. ३१०। (126) दिगाम्वरत्व और दिगम्बर मुनि
SR No.090155
Book TitleDigambaratva Aur Digambar Muni
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherDigambar Jain Sarvoday Tirth
Publication Year
Total Pages195
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size4 MB
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