SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 130
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ वहाँ के कटारी खेड़ा की खुदाई में डॉ. फुहरर सा, ने एक समूचा सभा पन्दिर खुदवा निकलवाया था। यह मन्दिर ईस्वी पूर्व प्रथम शताब्दि का अनुमान किया गया है और यह श्री पाश्र्वनाथ जी का मन्दिर था। इसमें से मिली हुई मूर्तियाँ सन् ९६ से १५२ तक की हैं; जो र । हैं। यहाँ एक ईटों का बना इसमाचीन स्तू मिला था, जिसके एक स्तम्भ पर निम्न प्रकार लेख था महाचार्य इन्द्रनन्दि शिष्य पार्श्वयतिस्स कोट्टारी।" आचार्य इन्द्रनन्दि उस समय के प्रख्यात दिगम्बर मुनि थे।' कौशाम्बी के पुरातत्व में दिगम्बर संघ- कौशाम्बी का पुरातत्व भी दिगम्बर मुनियों के अस्तित्व का पोषक है। वहाँ से कुषाण काल का पथुरा जैसा आयागपष्ट मिला है। जिसे राजा शिवमित्र के राज्य में आर्य शिवनन्दि की शिष्या बड़ी स्थविरा बलदासा के कहने से शिवपालित ने अर्हत की पूजा के लिये स्थापित किया था। इस उल्लेख से उस समय कौशम्बी में एक वृहत् दिगम्बर जैन संघ रहने का पता चलता है। कुहाऊं का गुप्तकालीन लेख दिगम्बर मुनियों का द्योतक है - कुहाऊं (गोरखपुर) से प्राप्त पुरातत्व गुप्त काल में दिगम्बर धर्म को प्रधानता का द्योतक है। वहाँ के पाषाण-स्तम्भ में, नीचे की ओर जैन तीर्थकर और साधुओं को नग्न मूर्तियां हैं और उस पर निम्नलिखित शिलालेख है। ___“यस्योपस्थानभूमि पत्ति-शत शिरः पात-वातावधूता। गुप्तानां बंशजस्य प्रविसृतयशसस्तस्य सर्वोत्तमद्धेः। राज्ये शक्रोषमस्य क्षितिप-शत-पतेः स्कन्दगुप्तस्य शान्तेः। वर्षे त्रिशंदशैकोत्तरक-शत-तमे ज्येष्ठ मासे प्रपन्ने ख्यातेऽस्मिन् ग्राम-रत्ने ककुभ इति जनैस्साधु-संसर्गपते पुत्रो यस्सोमिलस्य प्रचुर-गुण निधेट्टिसोमो पहार्थः तत्सूनू रुद्रसोमः पृथुलपतियशा व्याघ्ररत्यन्य संज्ञो मद्रस्तस्यात्मजो-भूद्विज-गुरुयतिषु प्रायशः प्रीतिमान्यः इत्यादि।" __भाव यही है कि संवत १४१ में प्रसिद्ध तथा साधुओं के संसर्ग से पवित्र ककुभ ग्राम में ब्राह्मण-गरु और यतियों को प्रिय मद्र नापक विप्र रहते थे, जिन्होंने पाँच अर्हत्-बिम्ब निर्मित कराये थे। इससे स्पष्ट है कि उस समय ककुभ ग्राम में दिगम्बर मनियों का एक वृहत् संघ रहता था। १. संप्रजैस्मा. पृ. ८१-८२ (General Cunningham) found a number of fragmentary naked Jain slalucs. Some inscribcd wilh dales ranging from 96 to 152 A.D. २. संप्राजेस्मा., पृ. २७ ३. पूर्व., पृ. ३-४। दिगम्मरत्व और दिगम्बर मुनि (127)
SR No.090155
Book TitleDigambaratva Aur Digambar Muni
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherDigambar Jain Sarvoday Tirth
Publication Year
Total Pages195
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy