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अशोक के शासन लेख में निर्ग्रथ सिंधु देश के पुरातत्व के उपरान्त सम्राट् अशोक द्वारा निर्मित पुरातत्व हो सर्वप्राचीन है। वह पुरातत्व भी दिगम्बर मुनियों के अस्तित्व का द्योतक है। सम्राट् अशोक ने अपने एक शासन लेख में आजीविक साधुओं के साथ निग्रंथ साधुओं का भी उल्लेख किया है।
खंडगिरि - उदयगिरि के पुरातत्व में दिगम्बर मुनि- अशोक के पश्चात् खण्डगिरिं-उदयगिरि का पुरातत्त्व दिगम्बर धर्म का पोषक है। जैन सम्राट् खारवेल के हाथीगुफा वाले शिलालेख में दिगम्बर मुनियों के "तापस" (तपस्वी) रूप का उल्लेख है। उन्होंने सारे भारत के दिगम्बर मुनियों का सम्मेलन किया था, यह पहले लिखा जा चुका है। खारवेल की पटरानी ने भी दिगम्बर मुनियों-कलिंग श्रमणों के लिये गुफा निर्मित कराकर उनका उल्लेख अपने शिलालेख में निम्न प्रकार किया है
“ अरहन्तपसादायन् काहामानम् समनानं लेन करितम् राज्ञो लालकहथौसा हसपपोतस् धुतुनाकलिंगचक्रवर्तिनों श्री खारवेलस अगमहिसिना कारितम् । ”
भावार्थ - “अहंत के प्रासाद या मन्दिर रूप यह गुफा कलिंग देश के श्रमणों (दिगम्बर मुनियों) के लिये कलिंग चक्रवर्ती राजा खारवेल की मुख्य पटरानी ने निर्मित कराई, जो हथीसहस के पौत्र लालकस की पुत्री थी।
खण्डगिरि की 'तत्व गुफा' पर जो लेख है वह बालमुनि का लिखा हुआ है 'अनन्त गुफा' में लेख है कि दोहद के दिगम्बर मुनियों- श्रमणों की गुफा ( दोहद समनानम् लेनम्)।'
इस प्रकार खण्डगिरि- उदयगिरि के शिलालेखों से ईस्वी पूर्व दूसरी शताब्दि में दिगम्बर मुनियों के कल्याणकारी अस्तित्व का पता चलता है।
खण्डगिरि - उदयगिरि पर जो मूर्तियाँ हैं, वे प्राचीन और नग्न हैं और उनसे दिगम्बरत्व तथा दिगम्बर मुनियों के अस्तित्व का पोषण होता है। वह अब भी दिगम्बर मुनियों का मान्य तीर्थ है।
मथुरा का पुरातत्व और दिगम्बर मुनि- मथुरा का पुरातत्व ईस्वी पूर्व प्रथम शताब्दि तक का है और उससे भी दिगम्बर मुनियों का जनता में बहुमान्य और
१. स्तम्भ लेख नं. 19
२. सवदिसाने तापसान, पंक्ति १५, JBORS
३. बॅबिओ जैस्मा, पृ. ९१ ।
Y. Ibid.p. 94
५. lbid.p. 97. जैसिभा, वर्ष
६.
दिगम्बरत्व और दिगम्बर मुनि
१, किरण ४, पृ. १२३ ।
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