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तथा बौद्धों के उल्लेख से भगवान् पार्श्वनाथ और भगवान् महावीर के पहले के जैनों में भो ध्यान और योगाभ्यास के नियमों का होना प्रमाणित है। 'संयुक्तनिकाय' में जैनों के अवितर्क और अविचार श्रेणी के ध्यान का उल्लेख है और “दीर्घनिकाय" के 'ब्रह्मजालसुत्त से प्रकट है कि गौतम बुद्ध से पहले ऐसे साधु थे जो ध्यान और विचार द्वारा मनुष्य के पूर्व भवों को बतलाया करते थे। जैन शास्त्रों में ऋषभादि प्रत्येक तीर्थकर के शिष्य समुदाय में ठीक ऐसे साधुओं का वर्णन मिलता है, तथापि उपनिषदों में जैनों के 'शुक्लध्यान' का उल्लेख मिलता है, यह पहले ही लिखा जा चुका है। अतः यह स्पष्ट है कि जैन साधु एक अतीव प्राचीन काल से ध्यान और योग का अभ्यास करते आये हैं तथा झल्ल, मल्ल, लिच्छवि, ज्ञात आदि प्रात्य क्षत्रिय प्रायः जैन थे। अन्यत्र यह सिद्ध किया जा चुका है कि "व्रात्य" क्षत्रिय बहुत करके जैन थे और उनमें के ज्येष्ठ व्रात्य सिवाय 'दिगम्बर मुनि के और कोई न थे। इस अवस्था में सिन्धु देश के उपयुक्त कारलवर्ती मनुष्यों का प्राचीन जैन ऋषियों का भक्त होना बहुत कुछ संभव है। किन्तु मोहन-जोदड़ो से जो मूर्तियाँ पिली हैं वह वस्त्रसंयुक्त हैं और उन्हें विद्वान लोग 'पुजारी (Priest) व्रात्यों की पूर्तियाँ अनुमान करते हैं। हमारे विचार से वे हीन-व्रात्य (अणुव्रती श्रावकों) की मूर्तियाँ हैं। ब्रात्य-साधु की मूर्ति वह हो नहीं सकती, क्योंकि उसे शास्त्रों में नग्न प्रगट किया गया है। वहाँ ज्येष्ठ व्रात्य' का एक विशेषण 'सपनिचमेद्र' अर्थात् 'पुरुषलिंग से रहित दिया हुआ है जो नग्नता का द्योतक है। हीन व्रात्यों की पोशाक के वर्णन में कहा गया है कि वे एक पगड़ी (नियंत्रद्ध) एक लाल कपड़ा और चांदी का आभूषण 'निश्क नापक पहनते थे। उक्त मूर्ति की पोशाक भी इसी ढंग की है। माथे पर एक पट्ट रूप पगड़ी, जिसके बीच में एक आभूषण जड़ा है, वह पहने हुये प्रकट है और बगल से निकला हुआ एक छींटदार कपड़ा वह ओढ़े हुये है। इस अवस्था में इन मूर्तियों को हीन व्रात्यों की मूर्तियाँ मानना ही ठीक है और इस तरह यह सिद्ध है कि व्रात्य क्षत्रिय एक
अतीव प्राचीन काल में अवश्य ही एक वेद-विरोधी संप्रदाय था, जिसमें ज्येष्ठव्रात्य दिगम्बर मुनि के अनुरूप थे। अतः प्रकारान्तर से भारत का सिंधुदेशवर्ती सर्वप्राचीन पुरातत्व भी दिगम्बर मुनि और उनकी योगमुद्रा का पोषक है।"
१.PIS, V. 287. २. ममबु.पू. २१९-२२० । ३. भपा., प्रस्तावना पृ. ४४-४५। X. SPCIV Plate LFig.b. .
५. 'SPCIVep. 25-33 में मोहन जोदड़ो की मूर्तियों को जिन मूर्तियों के समान और उनका पूर्ववर्ती प्रकट किया गया है। (124)
दिगम्बरत्व और दिगम्बर पनि