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[२३] भारतीय पुरातत्व और दिगम्बर मुनि
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"Chalcolithic civilisation of the Indus Vallcy was something quito different from the Vedic civilisation." "On the eve of the Aryan immigration the Indus Valley was in possession of a civilized and warlike
people."
-R.R.Ramprasad Chand. _मोहन-जोदड़ो का पुरात्व और दिगम्बरत्व- भारतीय पुरातत्व में सिंधु देश के मोहन-जोदड़ो और पंजाब के हड़प्पा नामक ग्रामों से प्राप्त पुरातत्व अति प्राचीन हैं। वह ईस्वी सन से तीन-चार हजार वर्ष पहले का अनुमान किया गया है। जिन विद्वानों ने उसका अध्ययन किया है, वह इस परिणाम पर पहंचे हैं कि सिन्धु देश में उस समय एक अतीव सभ्य और क्षत्रिय प्रकृति के मनुष्य रहते थे, जिनका धर्म और सभ्यता वैदिक धर्म और सभ्यता से नितान्त भिन्न थी। एक विद्वान ने उन्हें "द्रात्य" सिद्ध किया है, और मनु के अनुसार “वात्य" वह वेद-विरोधी संप्रदाय था "जिसके लोग दिजों द्वारा उनको सजातीय पत्नियों से उत्पन्न हए थे, किन्तु जो (वैदिक) धार्मिक नियमों का पालन न कर सकने के कारण सावित्रि से पृथक कर दिये गये थे।" (मन् १०। १२) यह मुख्यतः क्षत्री थे। मनु एक व्रात्य क्षत्री से ही झल्ल, मल्ल, लिच्छवि, नात, करण, खस और द्राविड़ वंशों की उत्पत्ति बतलाते हैं। (मन १० ।२०) यह पहले भी लिखा जा चुका है। सिन्धु देश के उपयुक्त मनुष्य इसी प्रकार के क्षत्री थे और वे ध्यान तथा योग का स्वयं अभ्यास करते थे और योगियों को मूर्तियों की पूजा करते थे। मोहन-जोदड़ो से जो कतिपय मूर्तियाँ पिली है उनकी दृष्टि जैन मूर्तियों के सदृश 'नासाग्रदृष्टि' है। किंतु ऐसी जैन मूर्तियाँ प्रायः ईस्वी पहली शताब्दि तक को ही मिलती विद्वान प्रकट करते हैं, यद्यपि जैनों की पान्यता के अनुसार उनके मंदिरों में बहुप्राचीन काल की मूर्तियाँ मौजूद है। उस पर, हाथीगुफा के शिलालेख से कुमारी पर्वत पर नन्दकालं की मूर्तियाँ का होना प्रमाणित है तथा मथुरा के 'देवों द्वारा निर्मित जैनस्तूप से भगवान् पार्श्वनाथ के समय में भी ध्यानदृष्टिमय मूर्तियों का होना सिद्ध है। इसके अतिरिक्त प्राचीन जैन साहित्य
१. SPCIV. p.I..25 २. Ibid.pp.25-34 ३. [bid.pp.25-26. ४. JBORS.
५. वीर, वर्ष ४. प. २९९ । दिगम्वरत्व और दिगम्बा मुनि
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