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arc found living at Palasika. (IA, VII, 36–37) Again velpalas and Aharashti are also mentioned (bid.V1,31) Banavase and Palasika were thus crowded ccntrcs of powerful Jain monks. Four Jaina Miss named Jayadhavala, Vijaya Dhavala, Alidhavala and Mahadhavala writen byJains gutus. Virasena and Jinasena living at Banavase during the rule of the carly Kadambas were recently discovered."
-QJMS, XXII,61-62 अर्थात- "मध्यकाल के मृगेश से हरिवर्मा एक कदम्ब वंशी राजागण जैन धर्म प्राव से अपने को बन्न न सके 'महान अईतदेव' को नमस्कार करते और जैन साध संघों को खूब दान देते थे। जैन साधुओं के अनेक संघ जैसे यापनीय' निग्रंथ और कूर्चक' कादम्बों की राजधानी पालाशिक में रह रहे थे। श्वेतपट और अहराष्टि संघों के वहाँ होने का उल्लेख भी मिलता है। इस तरह पालाशिक और बनवासी सबल जैन साधुओं से वेष्टित मुख्य जैन केन्द्रथे। दिगम्बरजैन गुरु वीरसेन और जिनसेन ने जिन जयधवल, विजयधवल, अतिधबल और महाधवल नामक ग्रन्थों की रचना बनवासी में रहकर प्रारंभिक कदम्ब राजाओं के समय में की थी, उन चारों ग्रंथों की प्रतियाँ हाल ही में उपलब्ध हुई है।"
प्रो. शेषागिरि राउ इन प्रारंभिक कदम्बों को भी जैन धर्म का भक्त प्रकट करते हैं। उनके राज्य में दिगम्बर जैन मुनियों को धर्म प्रचार करने की सुविधायें प्राप्त थी इस प्रकार कदम्बवंशी राजाओं द्वारा दिगम्बर मुनियों का समुचित सम्मान किया गया था। पल्लव काल में दिगम्बर मुनि
एक समय पल्लव वंश के राजा भी जैन धर्म के रक्षक थे। सातवीं शताब्दी में जब ह्वेनसांग इस देश में पहुंचा तो उसने देखा कि यहाँ दिगम्बर जैन साधुओं (निग्रंथों) की संख्या अधिक है। पल्लव वंश के शिवस्कंदवर्मा नामक राजा के गुरु दिगम्बराचार्य कुन्दकुन्द थे। तदोपरान्त इस वंश का प्रसिद्ध राजा महेन्द्रवर्मन् पहले जैन था और दिगम्बर साधुओं की विनय करता था।
१. यापनीय संघ के मुनिगण दिगम्बर वेष में रहते थे, यद्यपि वे स्त्री-मुक्ति आदि मानते थे। देखो दर्शनसार।
२. निग्रंथ दिगम्बर मुनि। ३. 'कूर्चक' किन जैन साधुओं का द्योतक है, यह प्रगट नहीं है। ४, श्वेतपट-श्वेताम्बर।
५. अहराष्टि संभवतः दिगम्बर मुनियों का द्योतक है। शायद अहनीक शब्द से इसका निकास हो।
६. SSJ. PL.II.p.69 & 72 19. PS. list. Intro. p.XV
८. EH] p.495 दिगम्बरस्व और दिगम्बर मुनि
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