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________________ चोल देश में दिगम्बर मुनि चोल देश में भी उस चीनी यात्री ने दिगम्बर धर्म को प्रचलित पाया था। मलकूट (पाण्ड्य देश) में भी उसने नंगे जैनियों को बहुसंख्या में पाया था । 2 सातवीं शताब्दि के मध्य भाग में पाण्ड्य देश का राजा कुण या सुन्दर पाण्ड्य दिगम्बर मुनियों का भक्त था। उसके गुरु दिगम्बराचार्य श्री अमलकीर्ति थे और उसका विवाह एक चोल राजकुमारी के साथ हुआ था, जो शैव थी। उसी के संसर्ग से सुन्दर पाण्ड्य भी शैव हो गया था।' * दसवीं शताब्दि तक प्रायः सब राजा दिगम्बर जैन धर्म के आश्रयदाता थे पच बात तो यह है कि दक्षिण भारत में दिगम्बर जैन धर्म की मान्यता ईस्वी दसवीं शताब्दि तक खूब रही थी। दिगम्बर मुनिगण सर्वत्र विहार करके धर्म का उद्योग करते थे। उसी का परिणाम है कि दक्षिण भारत में आज भी दिगम्बर मुनियों है। मि. राइस इस विषय में लिखते है कि का सद्भा "For more than a thousand years after the beginning of the Christian era, Jainism was the religion professed by most of the rulers of the Kanarese people. The Ganga King of Talkad the Rashtrakuta and Kalachurya Kings of Manyakhel and the early Hoysalas were all Jains. The Brahmanical Kadamba and early Chalukya Kings were tolerant of Jainism. The Pandya Kings of Madura were Jaina, and Jainism was dominant in Gujarat and Kathiawar"," भावार्थ - ईस्वी सन् के प्रारम्भ होने से एक हजार से ज्यादा वर्षों तक कनडु देश के अधिकांश राजाओं का मत जैन धर्म था। तलकांड के गंग राजागण, मान्यखेट के राष्ट्रकूट और कलाचूर्य शासक और प्रारंभिक होयसल नृप सब ही जैनी थे। ब्राह्मण मत को मानने वाल जो कदम्ब राजा थे उन्होंने और प्रारंभ के चालुक्यों ने जैन धर्म के प्रति उदारता का परिचय दिया था। मदुरा के पाण्ड्य राजा जैन ही थे और गुजरात तथा काठियावाड़ में भी जैन धर्म प्रधान था। ” ९. हुआ, पृ. ५७०.1 २. हुभा., पृ. ५७४ The nude Jainas were present in multitudes "EHI. p. 473 ३. AD.JB. p. 46 ४. EHl.p.475. ५. HKI.p.16. (108) दिगम्बरात्व और दिगम्बर मुनि
SR No.090155
Book TitleDigambaratva Aur Digambar Muni
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherDigambar Jain Sarvoday Tirth
Publication Year
Total Pages195
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size4 MB
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