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अन्य तीर्थंकरों का दक्षिण भारत से सम्बन्ध
ऋषभदेव के उपरान्त अन्य तीर्थंकरों के समय में भी दिगम्बर धर्म का प्रचार दक्षिण भारत में रहा था। तेईसवें तीर्थंकर श्री पार्श्वनाथ जी के तीर्थ में हुये राजा करकण्डु ने आकर दक्षिण भारत के जैन तीर्थों की वन्दना की थी। मलय पर्वत पर रावण के वंशजों द्वारा स्थापित तीर्थंकरों की विशाल मूर्तियों की भी उन्होंने वन्दना की थी। वहीं बाहुबलि की और श्री पार्श्वनाथ जी की मूर्तियाँ थीं जिनको रामचन्द्र जी ने लंका से लाकर यहाँ स्थापित किया था। अन्तिम तीर्थंकर भगवान् महावीर ने भी अपने पुनीत चरणों से दक्षिण भारत को पवित्र किया था। मलय पर्वतवर्ती हेमाँग देश में जब वीर प्रभु पहुँचे थे तो वहाँ का जीवन्धर नामक राजा उनके निकट दिगम्बर मुनि हो गया था। इस प्रकार अत्यन्त प्राचीनकाल से दिगम्बर मुनियों का सद्भाव दक्षिण भारत में है।
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दक्षिण भारत के इतिहास के काल
किन्तु आधुनिक इतिहासवेत्ता दक्षिण भारत का इतिहास ईस्वी पूर्व छठी या चौथी शताब्दि से आरम्भ करते हैं और उसे निम्न प्रकार छह भागों में विभक्त करते हैं
(१) प्रारम्भिक काल - ईस्वी ५ वीं शताब्दि तक
(२) पल्लवकाल - ई. ५वीं से ९ वीं शताब्दि तक,
(३) चोल अभ्युदाय काल - ई. ९वीं १४वीं शताब्दि तक,
(४) विजयनगर साम्राज्य का उत्कर्ष - १४वीं से १६ वीं शताब्दि तक,
(५) मुसलमान और मरहट्टा काल- १६वीं से १८वीं शताब्दि तक,
(६) ब्रिटिश काल- १८वीं से १९ वीं शताब्दी ई. तक।
दक्षिण भारत के उत्तर सीमावर्ती प्रदेश के इतिहास के छह भाग इस प्रकार हैं
(१) आन्ध्र काल - ई. ५ वीं शताब्दि तक,
(२) प्रारम्भिक चालुक्य काल -- ई. ५वीं से ७वीं शताब्दि और राष्ट्रकूट ७वीं से १० वीं शताब्दि तक,
(३) अन्तिम चालुक्य काल - ई.१० वीं से १४वीं शताब्दि तक,
१. जैशिसं, भूमिका, पृ. १७-३२ ॥
२. करकण्डु चरित् संधि ५ । ३. जैशिर्स, भूमिका, पृ. २६ । ४. भमवु., पृ. ९६ । ५. SAI. p.31
दिगम्बत्व और दिगम्बर मुनि
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