________________
1
[२१] दक्षिण भारत में दिगम्बर जैन मुनि
"सरसा पयसा रिक्तेनाति तुच्छजलेन च। जिनजन्मादिकल्याण क्षेत्रे तीर्थत्वमाश्रिते ।।४०।। नाशमेष्यति सद्धर्मो मारवीर मदच्छिदः । स्थास्यतीह क्वचित्प्रान्ते विषये दक्षिणादिके ।। ४१ । । " - श्री भद्रबाहुचरित्र
दिगम्बर जैन धर्म दक्षिण भारत में रहन निश्चित है
भ
दिगम्बर जैनाचार्य, राजा चन्द्रगुप्त ने जो स्वप्न देखा उसका फल बताते हुये कह गये है कि "जलरहित तथा कहीं थोड़े जल भरे हुये सरोवर के देखने से यह सच जानो कि जहाँ तीर्थंकर भगवान् के कल्याणादि हुये हैं ऐसे तीर्थ स्थानों में कामदेव के मद का छेदन करने वाला उत्तम जिन धर्म नाश को प्राप्त होगा तथा कहीं दक्षिणादि देश में कुछ रहेगा भी। और दिगम्बरचार्य की यह भविष्यवाणी करीब-करीब ठीक ही उतरी है, जबकि उत्तर भारत में कभी-कभी दिगम्बर मुनियों का अभाव भी हुआ, तत्र दक्षिण भारत में आज तक बराबर दिगम्बर मुनि होते आये हैं और दिगम्बर जैनों के श्री कुन्दकुन्दादि बड़े-बड़े आचार्य दक्षिण भारत में ही हुये हैं। अतः दक्षिण भारत को दिगम्बर मुनियों का गढ़ कहना बेजा नहीं है।
ऋषभदेव और दक्षिण भारत
अच्छा तो यह देखिये कि दक्षिण भारत में दिगम्बर मुनियों का सद्भाव किस जमाने से हुआ है ? जैन शास्त्र बतलाते हैं कि इस कल्पकाल में कर्मभूमि को आदि में श्री ऋषभदेव जी ने सर्वप्रथम धर्म का निरूपण किया था और उनके पुत्र बाहुबलि दक्षिण भारत के शासनाधिकारी थे। पोदनपुर उनकी राजधानी थी। भगवान् ऋषभदेव ही सर्वप्रथम वहाँ धर्मोपदेश देते हुये पहुंचे थे।' वह दिगम्बर मुनि थे, यह पहले ही लिखा जा चुका है। उनके समय में ही बाहुबलि भी राज-पाट छोड़कर दिगम्बर मुनि हो गये थे। इन दिगम्बर मुनि की विशालकाय नग्न मूर्तियाँ दक्षिण भारत में अनेक स्थानों पर आज भी मौजूद हैं। श्रवणबेलगोल में स्थित मूर्ति ५७ फीट ऊँची अति मनोज्ञ है; जिसके दर्शन करने देश-विदेश के यात्री आते है। कारकल - बेनूर आदि स्थानों में भी ऐसी ही मूर्तियां है। दक्षिण भारत में बाहुबलि मुनिराज की विशेष मान्यता है।
१. भद्र, पृ. ३३ ।
२. आदिपुराण ।
(102)
दिगम्बरत्व और दिगम्बर मुनि