________________
कवि दण्डिन् (आठवीं श.) अपने "दशकुमारचरित" मे दिगम्बर मुनि का उल्लेख 'क्षपणक' नाम से करते है, जिससे उनके समय में नग्न मुनियों का होना प्रमाणित है।" ___ 'पंचतन्त्र' (तंत्र ४) का निम्न श्लोक उस काल में दिगम्बर मुनियों के अस्तित्त्व का द्योतक है।
"स्त्रीमुद्रां मकरध्वजस्य जयिनी सर्वार्थ सम्पत् करी। ये मूढाः प्रविहाय यान्ति कुधियो मिथ्या फलांवेषिणः।। ते तेनैव निहत्य निर्दयतरं नग्नीकृता मुण्डिताः।।
केचिद्रत्तपटीकताश्च जटिलाः कापालिकाश्चापरे।।" "पंचतन्त्र के अपरीक्षितकारक पंचमतंत्र की कथा दिगम्बर मुनियों से सम्बन्ध रखती है। उससे पाटलिपुत्र (पटना) में दिगम्बर धर्म के अस्तित्व का बोध होता है। कथा में एक नाई को क्षपणक विहार में जाकर जिनेन्द्र भगवान की वंदना और प्रदक्षिणा देते लिखा है। उसने दिगम्बर मनियों को अपने यहाँ निमन्त्रित किया, इस पर उन्होंने आपत्ति की कि श्रावक होकर यह क्या कहते हो? ब्राह्मणों की तरह याँ आमंत्रण कैसा? दिगम्बर मुनि तो आहार-वेला पर घूमते हुये भक्त श्रावक के यहाँ शुद्ध भोजन मिलने पर विधिपूर्वक ग्रहण कर लेते है। इस उल्लेख से दिगम्बर मुनियों के निमन्त्रण स्वीकार न करने और आहार के लिये भ्रमण करने के नियम का समर्थन होता है। इस तंत्र में भी दिगम्बर पुनि को एकाकी, गृहत्यागी, पाणिपात्र भोजी और दिगम्बर कहा गया है।
"प्रबोधचंद्रोदय" नाटक के अंक ३ में निम्नलिखित वाक्य दिगम्बर जैन मुनि को तत्कालीन बाहुल्यता के बोधक है
"सहि पेक्ख पेक्ख एसौ गलतमल पंक पिच्छिलवीहच्छदेहच्छत्रीउल्लञ्चि अचिउरो मुक्कवसणवेसदुद्दसणों सिहिसिहिदपिच्छआहत्थो इदोजैव पडिवहदि।"
भवार्थ- "हे सरिख देख देख, वह इस ओर आ रहा है। उसका शरीर भयंकर और मलाच्छन है। शिर के बाल लुञ्चित किये हुये है और वह नंगा है। उसके हाथ में पोरपिच्छिका है और वह देखने में अमनोज्ञ है।
१. बीर, वर्ष २,पृ.३१७। २. पंत. निर्णयसागर प्रेस सं. १९०२, पृ. १९४ व JG.XIV, 124
३. 'क्षपणकविहारं गत्वा जिनेन्द्रस्य प्रदक्षिणत्रयं विधाय .... भोः श्रावक, घर्मनोऽपि किमेवं वदसि। किं वयं ब्रह्मणसमानाः यत्र आमन्त्रणं करोषि। वयं सदैव तत्काल परिचर्ययां प्रमन्तो भक्तिपाजं श्रावकमवलोक्य तस्य गृहे गच्छामः । -पंत,पू.-२-६ थ JG.XIV. 126-130
४. 'एमाकीगृहसंत्यक्तः पाणिपात्रो दिगम्बरः। (100)
दिगम्बात्व और दिगम्बर मुनि