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________________ धैर्य यस्य पिता क्षमा व जननी शान्तिश्चिरं गेहिनी। सत्य-मित्रमिदं त्या च भगिनी भातापनः संयमः।। शय्या भूमितलं दिशोऽपि वसने ज्ञानामृतं भांजन। ह्येते यस्य-कुटंबिनो वद सख्खे कस्माद् भयं योगिनः।।१८।। अर्थात- "धैर्य जिसका पिता है, क्षमा जिसकी माता है, शान्ति जिसकी स्त्री है, सत्य जिसका मित्र है, दया जिसको बहिन है, संयम किया हुआ मन जिसका भाई है, भूमि जिसकी शय्या है, दशों दिशायें ही जिसके वस्त्र है और ज्ञानामृत हो जिसका भोजन है- यह सब जिसके कुटुम्ब हों, भला उस योगी पुरुष को किसका भय हो सकता है? 'वैराग्यशतक' के उपयुक्त श्लोक स्पष्टतया दिगम्बर मुनियों को लक्ष्य करके लिख्खे गये हैं। इनमें वर्णित सब ही लक्षण जैन मुनियों में मिलते हैं। 'मुद्राराक्षस' नाटक में क्षपणक जीवसिद्धि का पार्ट दिगम्बर मुनि का द्योतक है।' वहाँ जीवसिद्धि के मख से कहलाया गया है "सासणयलिहंताण पडिवजह मोहवाहि वेज्जाणं। __ जेमुत्तमात्तक पच्छापत्थप्पदिसन्ति ।।१८।।४।।" अर्थात- “मोह रूपी रोग के इलाज करने वाले अर्हतों के शासन को स्वीकार करो, जो मुहूर्त मात्र के लिये कडूवे है, किन्तु पीछे से पथ्य का उपदेश देते हैं।" इस नाटक के पाँचवे अंक में जीवसिद्धि कहता है कि “अलहताणं पणमामि जेदेगंभीलदाए बुद्धिए। लोउत लेहि लोए सिद्धि पामेहि गच्छन्दि।।२।।" भावार्थ- "संसार में जो बुद्धि को गंभीरता से लोकातीत (अलौकिक) मार्ग से । - मक्ति को प्राप्त होते हैं, उन अर्हतों को मैं प्रणाम करता हैं।" ___ "मुद्राराक्षस' के इस उल्लेख से नन्दकाल में क्षपणक-दिगम्बर मुनियों के निर्बाध विहार और धर्म प्रचार का समर्थन होता है, जैसा कि पहले लिखा जा चका है। ___ वराहमिहिर संहिता' में भी दिगम्बर मनियों का उल्लेख है। उन्हें वहाँ जिन भगवान का उपासक बताया गया है। राहमिहिर के इस उल्लेख से उनके समय में दिगम्बर मुनियों का अस्तित्त्व प्रपाणित होता है। अर्हत भगवान की पूर्ति को भी वह नग्न ही बताते हैं।"५ १. जै. पृ.४७। २. HDW.p.10. ३. वेजे.,पृ.४०-४१। ४. "शाक्यान् सर्वहितस्य शांति मनसो नग्नान जिनानां विद्." ।।१९।।६१।। ५. "आजानु लम्बबाहुः श्रीवत्साङ्क प्रशान्तमूर्तिश्च । दिग्वासास्तरुणो रुपवांश्च कार्योs हंता देवः।।४५ । ।५८ ।। वराहमिहिर संहिता दिगम्बरत्व और दिगम्बर मुनि (93)
SR No.090155
Book TitleDigambaratva Aur Digambar Muni
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherDigambar Jain Sarvoday Tirth
Publication Year
Total Pages195
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size4 MB
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