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________________ XALQ BUREAUTALALATHUNARPRATURARAKARUSAHARA आदि उत्पन्न करें इस प्रकार की वाणी अप्रिय कहलाती है। ये सभी वचन दुर्ध्यान के कारण हैं। रौद्र परिणामों के जनक हैं । रौद्रध्यान नरक गमन का कारण है तथा लोक सद्व्यवहार का विघातक है। कहा भी हैं - प्रिय वाक्य प्रदानेन सर्वे तुष्टन्ति मानवाः। अर्थात् – संसार में शत्रु भी प्रिय, मधुर वाणी से मित्र हो जाते हैं। कठोर वाणी से मित्र भी शत्रु हो जाते हैं ! लोक नीति भी यही है कहा है कि - काका काको धन हरे, कोयल काको देय। . मीठी वाणी बोलकर, जग अपनो कर लेय ॥ गर्हित, निंद्य, अप्रिय वचरों का कुफल दिखाते हुए कहा है कि जिह्वा ऐसी बावरी कहगई सर्ग पताल आप तो कह भीतर गई, जूते खाये कपाल ।। अर्थात् कठोर वाणी का फल वध, बंधन, मार-पीट होता है। अतः वचन चातुर्य होना अनिवार्य है। लोक नीति है "तलवार का घाव भर जाता है परन्तु वचन का घाव नहीं भरता ।” अस्तु, वाक् शक्ति का प्रयोग उचित करना लोकाचार है और विरुद्ध बोलना, आगम विरुद्ध यद्वा-तद्वा भाषण करना लोकाचार विरोधी है। विरुद्ध आचार त्यागना चाहिए ।। २० ।। • स्व राज्य नीति विरुद्ध आचार गृह, पुर, देश स्वराज्य के, जे विरुद्ध वरताव । कलह अशुध वस्त्रादि तब र मन उन्नति चाव ।। २१ ।। अर्थ - मानव जीवन के यापन करने के साधन, घर, पुर (नगर, गांव) राज्य, राष्ट्र, देश, समाज और परिवार आदि होते हैं । इनके अनुकूल जो आचरण व प्रवृत्ति बनाये रखता है उसका जीवन सुख-शान्ति, मान-सम्मान से सहित रहता है। यदि विरुद्ध रहन-सहन, व्यवहार, चाल-चलन हुआ तो NAKATAKANA TAZAARALAARUKKAKARAN NAKARARASAKA घनिन्द्ध श्रावकाचार -८६६
SR No.090137
Book TitleDharmanand Shravakachar
Original Sutra AuthorMahavirkirti Acharya
AuthorVijayamati Mata
PublisherSakal Digambar Jain Samaj Udaipur
Publication Year
Total Pages338
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, Spiritual, & Principle
File Size6 MB
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