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• गय (लोक) नीति विरुद्ध आचार
सभ्य जगत की नीति के, विरुद्ध आचार-विचार। गाली चोरी आदि तज, सभ्य बनो हितकार ॥ २०॥
...(३) अयं द्विजैः विद्वद्भिः = यह विद्वान् ब्राह्मणों की उक्ति है।
(ख) पशुधर्मो विगर्हितः = पाशविक प्रवृत्तियों के पोषण में लगे रहना गर्हित कार्य है। (ग) सिंह गमन सपुरूष वचन कदली फलत न दजी बार।
तिरिया तेल हमीर हट चढ़े न दूनी बार ||
अर्थ - सिंह गमन - सिंह जिधर प्रस्थान करता है उस ओर गमन करता हुआ पीछे मुड़कर नहीं देखता है। सुपुरूष वचन - महापुरुषों का वचन एक होता है वे दुतरफी बातें नहीं करते हैं, सत्य मार्ग पर अटल रहते हैं।
कदली फलत न दूजी बार केले का वृक्ष एक बार ही फलता है, दुबारा उसमे फल नहीं आता। तिरिया तेल - स्त्री पर्याय में एक ही बार तेल चढ़ता है अर्थात् विवाह संस्कार एक बार ही होता है।
हमीर हठ - हमीर कवि का नाम है, हमीर हठ भी वैसा ही है।
(घ) एकपतौ व्रते कन्याः व्रतानि धारयन्ति - एक पतिव्रत में निष्ठ कन्या गृहस्थ धर्मोचित अनेक व्रतों को धारण करती हुई गृहस्थ धर्म का पालन करती है।
(ड) कियन्तो महिला वैधव्यतीव्रदुःखं आजीवनं नेयन्ति कायेनापि - कितनी महिलायें वैधव्य सम्बन्धी दुःख से दुःखी भी हैं। वैधव्य पूर्वक ही शील की रक्षा करते हुए पूरा जीवन व्यतीत कर देती हैं। (च) उत्पधन्ते विलीयन्ते दरिद्राणां मनोरथाः ।
बालवैधव्यदग्धानां कुलस्त्रीणां कुचाविव ॥ अर्थ - बाल विधवा कुलीन स्त्री के कुच (स्तन) के समान ही उन दरिद्रो के मनरोथ हैं जो उत्पन्न होते हैं, नष्ट होते हैं सुखादि फल को देने में असमर्ध रहा करते हैं ॥१९॥ BREASxsxssanisaxsatusERSANASIKERSamzniesSANRNA
घनिन्द श्रापकाचार -६४