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________________ ALATASAHAKARUSAASAS RARA ALAM A जाति का पुरुष अग्रवाल जाति की कन्या के साथ विवाह करता है तो उससे उत्पन्न सन्तान न तो खण्डेलवाल जाति के गुण धर्म वाली होगी न अग्रवाल, वह तो खडेलवार एक तीसरे ही प्रकार की होगी जो अपने जातीय आचारविचार से पराङ्मुख ही रहेगी, यह जाति संकरता जाति विरुद्ध व्यवहार होगा। देखा जाता है कि यदि अश्व और गर्दभी के संयोग से सन्तान उत्पन्न हो तो वह न तो शुद्ध अश्व ही होती है और न ही गर्दभ (गधा) जाति की, अपितु खच्चर उत्पन्न होती है । वृक्ष, पौधे, फलादि में भी यदि विभिन्न जाति की कलम लगायी जाय तो वे भी विकृत रूप के पुष्प, फलादि उत्पन्न करते हैं। इससे सिद्ध है कि विजाति-विवाह सम्बन्ध करना अपनी जाति के विरुद्ध आचरण है। कुल-वंश परम्परा का घातक है, सर्वथा त्याज्य है। विधवा विवाह तो समाज की शक्तियों की रीढ़ तोड़ने वाली, शुभाचरण की नाशक, व्यभिचार की पोषक प्रथा है। इससे आचार-विचार, धर्म सभी का नाश होता है। आगम की अवहेलना होने से तीव्र मिथ्यात्व-मोह कर्म का बंध होता है । कुल एवं जाति वंश की शुद्धि नहीं रहती, उसे जीवन भर सूतक ही रहता है जिससे जिनपूजा, पात्र-दान स्वाध्यायादि धार्मिक क्रियाओं के करने का अधिकार नहीं रहता। आगम में ऐसे जनों को शूद्र संज्ञा दी है। जिस प्रकार कोयला चाहे जितना धोया जाय कालिमा नहीं जा सकती उसी प्रकार विजाति विधवा विवाह करने वाले कितनी चेष्टा करें उनकी शुद्धि नहीं हो सकती है। अत: जाति भी एक धर्म है जिसकी शुद्धि बनाये रखने को तदनुसार ही अपना आचार-विचार, खान-पान, व्यापारादि करते हुए धर्मध्यान रत रहना चाहिए ।। १९ ॥ १९. (क) (१) कन्यादानं विवाहः इति लोक प्रसिद्धिः । कन्यादान पूर्वक विवाह का होना लोकप्रसिद्ध है। (२) न विवाह विधायुक्त विधवा = विधवा विवाह विधि युक्त नहीं है, सही नहीं है।... SANATANROERERSEMIERERAKSAEmeasusarasaakaassREMExesx धममिन्दायकाचार-~६३
SR No.090137
Book TitleDharmanand Shravakachar
Original Sutra AuthorMahavirkirti Acharya
AuthorVijayamati Mata
PublisherSakal Digambar Jain Samaj Udaipur
Publication Year
Total Pages338
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, Spiritual, & Principle
File Size6 MB
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