SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 52
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ BRUARGRasdelarusasuraMERRIGExxanusarSaraneKTA • विपरीत मिथ्यात्व का लक्षण युक्त्यागम से विरुद्ध को, उचित नहीं जहाँ जांच। जिमि परिग्रही को ऋषि कथन, है विपरीत विचार ॥१६॥ अर्थ - आगम में साधु का लक्षण करते हुए बताया है कि जो आरम्भ, परिग्रह का सर्वथा त्यागी है तथा ज्ञान, ध्यान व तप में सतत् प्रयत्नशील रहता है। विषय-कषायों से विरक्त रहता है। आत्म-स्वरूप चिन्तन करता है। परन्तु इन गुणों से सर्वथा हीन-रहित हैं, आरम्भ-परिग्रह में प्रवर्त रहे हैं, विषयकषायों के ही पोषण में लगे हैं, जिसमें साधुत्व-ऋषित्व की गन्ध भी नहीं है उन्हें ऋषि कहना, मानना विपरीत मिथ्यात्व है। निश्चय ही यह संसार का ही कारण है ।। १६ ।। १६. अब विपरीत मिथ्यात्व का लक्षण कहते हैं - सग्रन्थो निर्गन्धः केवली कवलाहारी स्त्री सिद्धयति इति एवमादिविपर्ययः एवं विघारूचिः यत्र तत् विपरीतमिथ्यात्वं । अर्थ - सग्रन्थ को निम्रन्थ मानना, केचली को कवालाहारी मानना और स्त्री सिद्ध होती है इत्यादि मानना विपरीत मिथ्यात्व है। उदाहरण और भी - ____ अहिंसादि लक्षण सद्धर्मफलस्थ स्वर्गादिसुखस्य - हिंसादिरूपादियागादिफलत्वेन • अहिंसादि लक्षण वाले धर्म से स्वर्ग मोक्ष सुख मिलता है पर ऐसा न मानकर हिंसादि रूप-बलि कार्य को यागादि को स्वर्ग मोक्ष का कारण मानना - यह विपरीत मिथ्याच है। और भी - प्रमाणसिद्धस्य जीवस्य मोक्षस्य निराकरणत्वेन प्रमाणबाधित स्त्रीमोक्षास्तित्ववचनेन इत्यादि अनेकान्तावलम्बने विपरीताभिनिवेशे विपरीतमिध्यात्वम् । प्रमाणभूत - जिनागम में प्ररूपित मोक्ष के निराकरण पूर्वक प्रमाण बाधित स्त्री मोक्ष के अस्तित्व को मानना-विपरीताभिनिवेश लक्षण वाला विपरीत मिथ्यात्व है। MINARUNACHANAKANANAGARAANUsixarUSHANAMATATUSuture निवड पधा-धार-५९
SR No.090137
Book TitleDharmanand Shravakachar
Original Sutra AuthorMahavirkirti Acharya
AuthorVijayamati Mata
PublisherSakal Digambar Jain Samaj Udaipur
Publication Year
Total Pages338
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, Spiritual, & Principle
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy