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• रत्नत्रय
अहिंसापोषक रलत्रय, सम्यग्दर्शन ज्ञान । सच्चारित्रमिलि धर्मानन्द, आत्म सुक्ख निधान ॥ ७॥
अर्थ · अहिंसा परम धर्म की पुष्टि करने वाला रहना है। सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक्चारित्र इन तीनों का एकीकरण ही रत्नत्रय है। प्रत्येक भव्य को प्रथम सम्यग्दर्शन प्राप्ति का प्रयत्न करना चाहिए। इसके प्राप्त होते ही ज्ञानावरणी कर्म का विशेष क्षयोपशम हो जाता है और ज्ञान गुण सम्यक् व्यपदेश प्राप्त कर लेता है। दर्शन और ज्ञान सम्यकू होते ही स्वभाव से ही विषय-कषायों से विरक्ति हो ही जाती है। यह शुभाचार ही सम्यक्चारित्र कहा जाता है। ये तीन रत्न सुखदाता हैं।॥ ७॥
...के प्रति कोई विवाद नहीं। सभी धर्म शास्त्र अहिंसा को परम धर्म मानते हैं। इस पक्ष में सभी एकमत हैं।
जो मोक्षमार्गी हैं वही अहिंसा धर्म का पालन कर सकता है अतः मोक्षमार्ग क्या है ? इसे भी जानमा अनिवार्य है और मोक्षमार्ग में बाधक कौन हैं उसे भी समझना ही चाहिए अस्तु उक्त विषय का उल्लेख आगे करते हैं। ७. सम्यग्दर्शन ज्ञान चारित्राणि मोक्षमार्गः ।।
- तत्वार्थ सूत्र प्रथम अध्याय प्र. सूत्र । अर्थ - सम्यग्दर्शन, सम्यज्ञान और सम्यक् चारित्र इन तीनों की एकता मोक्षमार्ग
१. सम्यग्दर्शन - तत्त्वार्थ का सम्यक् प्रकार श्रद्धान होना सम्यग्दर्शन है।
२. सम्यक् ज्ञान - जिस-जिस प्रकार से जीवादि पदार्थ अवस्थित हैं उस-उस प्रकार से उनका जानना सम्यक्ज्ञान है । ज्ञान के पहले सम्यक् विशेषण संशय, विपर्यय, अनध्यवसाय (विमोह) इन दोषों का निराकरण करता है।
३. सम्यक्चारित्र - ज्ञानावरणादि कर्मों के ग्रहण करने में निमित्त भूत क्रिया से .. gaRMERESCAPSAKESARMERIRSaamestedERIRECasREARRRASincersa
धमणि श्रावकाचार-~५०