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________________ Xarica ARÜKRANUNULACANANGUTASUSANATATANZA आहार करता है। हाथ ही से केशलौंच करता है। एकान्त में नग्न होकर ध्यान का अभ्यास भी कर सकता है। क्षुल्लक हाथ से या कैंची आदि से भी केशोत्पाटन कर सकता है। दोनों में इतना ही अन्तर है। श्रेणी-पद की अपेक्षा समान उद्दिष्ट त्याग प्रतिमाधारी हैं। यह श्रावक का सर्वोत्तम पद है। प्रथम प्रतिमा से ५ वीं तक, जघन्य, ६वीं ७, ८, ९ वीं वाला मध्यम और इसके ऊपर उत्तम श्रावक कहलाता है ।। १२ ।। • वानप्रस्थ श्रावक का कर्तव्य-- उत्तम श्रावक का कहा, वानप्रस्थ आचार। क्षुल्लक ऐलक भेद इस, तृतीयाश्रम के सार ॥ १३ ॥ अर्थ - उत्तम श्रावक वानप्रस्थ कहलाता है। यह ग्रह त्यागी होता है। भिक्षावृत्ति से पात्र में आहार लेता है। विशेष आचार पूर्व में उल्लिखित है। विशेष आगम से ज्ञात करें। १३ ।। यहाँ पुनः उनका स्वरूप कहते हैं - १२. १. गृहतो मुनिवनमित्वा गुरूपकण्ठे व्रतानि परिगृह्य । भैक्ष्याशनस्तपस्यन्नुत्कृष्ट श्चेलखण्डधरः ।। १४७ ॥ र. के. श्रा.। अर्थ - जो साधक घर त्याग कर मुनि सान्निध्य में वन में जाकर धर्मगुरू के पास व्रतों को ग्रहण कर तप करता हुआ भिक्षा भोजन करने वाला और खण्डवस्त्रधारी उत्कृष्ट श्रावक उद्दिष्ट त्याग प्रतिमा धारी है। २. तत्तद्वृतास्त्रनिर्भिन्नवसन् मोहमहाभटः । उद्दिष्टपिंडभ्युज्झेदुत्कृष्टः श्रावकोऽन्तिमः ।। अर्थ - अपने योग्य पूर्ववत के साथ योग्य वस्त्र के अतिरिक्त समस्त का त्यागकर मोहभट को परास्त कर उद्दिष्ट भोजन का त्याग करने वाला अन्तिम ग्यारहवीं प्रतिमाधारी होता है ।। १२॥ १३. उत्कृष्ट श्रावको य: प्राक् क्षुल्लकोऽत्रैव सूचितः। स चापवाद लिंगी च वानप्रस्थोऽपि नामतः ।।... XARARKKUTULARANASAKALA UREATANZATARAKATANA धर्माद श्रावकाचार-३२४
SR No.090137
Book TitleDharmanand Shravakachar
Original Sutra AuthorMahavirkirti Acharya
AuthorVijayamati Mata
PublisherSakal Digambar Jain Samaj Udaipur
Publication Year
Total Pages338
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, Spiritual, & Principle
File Size6 MB
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