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________________ BACKCRETSALAYAGAYAGANATEKEREREACACHEACAAGAUASA • ११ वीं उद्दिष्ट त्याग प्रतिमा घर तां मुनिटिंग व्रत गहै, छुल्लक ऐलक होय | उद्दिष्टाशन तजि तपै, उत्तम श्रावक सोय ॥ १२ ॥ अर्थ - जो गृह का सर्वथा त्याग कर मूर्च्छा रहित हो मुनिराजों, दिगम्बर साधुओं के निकट जाकर दीक्षा ग्रहण करता है। गुरु सान्निध्य में ही रहकर यथा योग्य क्षुल्लक अथवा ऐलक पद धारण कर तपश्चरण करता है। भिक्षावृत्ति से भोजन करता है । उद्दिष्ट भोजन का त्याग करता है। अर्थात् स्वयं कह कर नहीं बनवाता और न ही अपने उद्देश्य से बनाया ही ग्रहण करता है। बुलाने या नहीं बुलाने पर आहार को जाता है, सम्मान पूर्वक, विधिवत् आह्वान करने पर श्रावक के घर जाकर अपने पात्र में आहार करता है। रूखे-सूखे, ठंडा-गरम, चटपटा, नीरस - सरस जैसा भी प्रासुक भोजन हो सन्तोष से ग्रहण करता है। उसमें राग-द्वेष नहीं करता, इच्छानुसार उदरपूर्ति उद्देश्य से आहार लेता है। इस पद के दो भेद हैं - १. क्षुल्लक और २ ऐलक । क्षुल्लक एक कौपीनलंगोटी के साथ एक उत्तीर्य वस्त्र दुपट्टा रखता है, इसे खण्ड वस्त्र कहते हैं क्योंकि इसकी लम्बाई इतनी कम होती है कि शिर ढके तो पाँव नहीं और पाँव ढके तो सिर नहीं ढकता । यह स्वाध्याय सामायिक, ध्यान आदि में निरत रहता है। बीर चर्या नहीं करता । सात घरों से लाकर किसी एक श्रावक के घर आग्रह करने पर भोजन करने का विधान है। वर्तमान में यह पद्धति प्रायः नहीं है। ऐलक मात्र एक लंगोटी रखता है। बैठकर आहार लेता है यह करपात्र में .. २. अपने व्रत में निष्ठावान होता है वह आरम्भ परिग्रह से विरक्त होकर ऐहिक - इस लोक सम्बन्धी कार्यों- आरम्भ परिग्रह रूप कार्यों में अनुमति नहीं देता वह अनुमति त्याग प्रतिमाधारी है ॥ ११ ॥ CACRETETEACHERKASALAENEASARACICABANAGARABAGALKETER धर्मानन्द श्रावकाचार ३२३
SR No.090137
Book TitleDharmanand Shravakachar
Original Sutra AuthorMahavirkirti Acharya
AuthorVijayamati Mata
PublisherSakal Digambar Jain Samaj Udaipur
Publication Year
Total Pages338
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, Spiritual, & Principle
File Size6 MB
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