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________________ SAGAUREAZANA SAXASAN23 VASARAS AYĀNANA ४. सामायिक में उपेक्षा उत्साह रहित हो मात्र नियम की पूर्ति के लिए कैसे भी अनादर करते हुये सामायिक काल पूरा कर देना चौथा अतिचार है। ५. सामायिक का जो काल है उसकी अन्यान्य कार्यों की व्यग्रता से याद नहीं रहना और सामायिक पाठ भूल जाना पाँचवां अतिचार है । इन अतिचारों के रहते सामायिक में चित्त नहीं लग सकता एवं आत्मा की निश्चलता नहीं हो सकती । अतः इन अतिचारों को नहीं लगाना ॥ १२ ॥ • प्रोषधोपवास व्रत के अतिचार - बिन शोधी लखी वस्तु को गेह बिछावे डार । विधि भूले नहीं आदरे प्रोषध के अतिचार ।। १३॥ " अर्थ बिना देखे बिना झाड़े किसी वस्तु का ग्रहण करना, बिस्तर बिछा देना तथा किसी वस्तु को छोड़ देना प्रोषधोपवास को भूल जाना और उसमें आदर नहीं रखना ये पाँच प्रोषधोपवास व्रत के अतिचार हैं। - — भावार्थ - १. जिस दिन प्रोषधोपवास किया जाता है उस दिन चारों प्रकार के आहार का त्याग होने से शरीर में शिथिलता आ जाना स्वाभाविक है, ऐसी अवस्था में शरीर के ओढ़ने, पहने के वस्त्र आदि, पूजन सामग्री, पूजन के अन्य उपकरण, शास्त्रजी, चौकी आदि वस्तुओं को बिना देखे और बिना झाड़े पोंछे ही उठाकर काम में ले लेना यह पहला अतिचार है। २. शिथिलतावश सोने की चटाई, शीतल पट्टी आदि बिस्तर और बैठने १२. वाक्काय मानसानां दुःप्रणिधानान्यनादरास्मरणे । सामायिकस्यातिगमा व्यज्यन्ते पञ्च भावेन ॥ १०५ ॥ र. क. श्री. अर्थ - सामायिक करने का नियम धारण कर मन, वचन, काय को चंचल करना - स्थिर नहीं रखना, प्रमादवश अनादर करना और की हुई समय की मर्यादा या पाठ को भूल जाना ये सामायिक शिक्षाव्रत के ५ अतिचार हैं ॥ १२ ॥ ZALAGARTZAROBÁBAGACASAGACALACAKANALAKAEREAS धर्मानन्द श्रावकाचार ३०५ BANANA
SR No.090137
Book TitleDharmanand Shravakachar
Original Sutra AuthorMahavirkirti Acharya
AuthorVijayamati Mata
PublisherSakal Digambar Jain Samaj Udaipur
Publication Year
Total Pages338
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, Spiritual, & Principle
File Size6 MB
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