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________________ SAERamerasansasxeRRENASERNISTRasasarawaersarl • सामायिक व्रत के अतिचार मन वच तन दुःसंचलन, जप माने वेगार। पाठ सामायिक भूलना, सामायिक अतिचार |॥ १२॥ - अर्थ - मन, वचन और शरीर इनका दुरुपयोग करना, सामायिक में अनादर करना, सामायिक का समय सामायिक पाठ भूल जाना इस प्रकार ये पाँच अतिचार सामायिक व्रत के हैं। ___ भावार्थ - १. मन दुःसंचलन - सामायिक करते-करते मन को वश में नहीं रखना, अशुभ संकल्प-विकल्प करना, दुष्ट परिणाम करना, इधर-उधर ध्येय से भिन्न पदार्थों में उसे चले जाने देना आदि मन की अशुभ भावनाएँ मन दुःसंचलन अतिचार हैं। २. वचन दुःसंचलन - सामायिक पाठ बोलते-बोलते कुछ का कुछ कह जाना जल्दी-जल्दी बोलना एवं अशुद्ध बोलना जिस छन्दादि को जिस लय में पढ़ना है, वैसे न पढ़कर मनमाने तरीके से पढ़ना हस्व को दीर्घ और दीर्घ को ह्रस्व पढ़ना इत्यादि वचन दुःसंचलन है। ३. इसी प्रकार शरीर व अंगोपागों को चालित करना काय दुःचलन है। इस प्रकार की प्रक्रिया में प्रमाद स्पष्ट है इसलिए सामायिक में मलोत्पन्न करने से अतिचार कहे हैं। जिस कार्य की जो विधि है उसे उसी विधि से करने पर ही उसका यथार्थ फल प्राप्त होता है। ...३. मौखर्य, ४. अतिप्रसाधन और ५. असमीक्ष्य अधिकरण। रागोद्रेक से असभ्य, हास्य भरे वचन बोलना कन्दर्प है । हास्य और असभ्य वचनों के साथ कुचेष्टा करना कौत्कुच्य है। धृष्टतापूर्वक प्रलाप करना - मौखर्य है। आवश्यकता से अधिक भोगोपभोग सामग्री रखना और बिना विचारे कार्य करना ये पाँचों का स्वरूप है।॥ ११ ॥ 8282XUANABARANHUNSA ANATARARANASAdaraNara धममिन्द श्रापकाचार-३०४
SR No.090137
Book TitleDharmanand Shravakachar
Original Sutra AuthorMahavirkirti Acharya
AuthorVijayamati Mata
PublisherSakal Digambar Jain Samaj Udaipur
Publication Year
Total Pages338
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, Spiritual, & Principle
File Size6 MB
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