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अर्थ - जिस भोग उपभोग का एक घंटे, एक दिन, १५ दिन इत्यादि समय की मर्यादा पूर्वक त्याग करना वह नियम नाम का परिमाण है । और जिस भोग उपभोग की वस्तु का जीवन पर्यन्त के लिए त्याग किया जाता है उसे यम परिमाण कहते हैं ।। १८ ॥
इसका फल
इस विधि परमान करि, तजत भोग उपभोग
वह अधि के अध से बचे, तृष्णा हेतु वियोग ॥ १९ ॥
अर्थ - ऊपर कही हुई विधि के अनुसार जो भोग और उपभोग का प्रमाण करके बाकी सभी वस्तुओं का त्याग कर देता है। वह श्रावक तृष्णा के बढ़ाने में जो कारण ऐसे परिग्रह के पाप से वह बच जाता है ॥ १९ ॥
१८. विषय विषतोऽनुपेक्षानुस्मृतिरतिलौल्यमतितृषाऽनुभवी ।
भोगोपभोगपरिमा व्यतिक्रमाः पञ्च कध्यन्ते ॥ ९० ॥ र. क. श्री.
अर्थ - १. विषयरूपी विष में आदर रखना, २. पूर्व भोगे भोगों का स्मरण करना, ३. वर्तमान विषय भोगों में तीव्र लोलुपता राम रखना, ४ . विषयों की प्राप्ति के लिए आसक्ति पूर्वक प्रयत्नशील रहना और ५. विषयानुभव में अति आनन्द मानना ये भोगोपभोग परिमाण व्रत के अतिचार हैं, इनका त्याग करना चाहिए ।। १८ ।
१९. इति यः परिमित भोगैः संतुष्टस्त्यजति बहुतरान् भोगान् । समन्यतर सीमा प्रतिदिवस भवति कर्त्तव्यम् ॥
अर्थ- जो भव्य आत्म परिणाम निर्मल करने का अभिलाषी है उसे अपनी आवश्यकतानुसार भोगों की सीमा कर अन्य बहुत से भोगों का त्याग कर देना चाहिए। नियमबद्ध होने से उसका फल प्राप्त होता है अन्यथा उपभोग नहीं करने पर भी उनसे उत्पन्न होने वाले पाप का भागी होता रहता है। अतएव श्रावक को प्रतिदिन सीमा कर ही भोगोपभोग सामग्री का उपयोग करना चाहिए ।। १९ ।।
ZASZCZCAYAYAYAYAYAYAYABACASABASABASABASASCHULEZEZEZ धर्मानन्द श्रावकाचार २६३