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________________ XxszsRNEURNREGISORISSASSASARASWERSEASETIMERESTERNATION • अन्य भी वाहन शयनासन तथा, अन्य भी वस्तु सचित । भोगोपभोग प्रमाणि नित, त्यागे अन्य समस्त ॥१६॥ अर्थ - इस प्रकार वाहन का भी नियम करना चाहिए कि मैं आज रेल, बस, हवाई जहाज, स्कूटर किसमें कितनी बार बैलूंगी या नहीं। मैं आज किसमें शयन करूँगी उसका नियम करना चाहिये । चटाई, पलंग, गद्दा, तकिया आदि का। और भी जो सचित्त वस्तुएँ हैं उनका भी नियम करना चाहिये । इस प्रकार भोगोपभोग व्रत का प्रतिदिन प्रमाण करके अन्य सभी वस्तुओं का त्याग कर देना चाहिए ॥१६॥ - -..-- ...अर्थ - श्रावकों को अपनी दैनिक चर्या शुद्धि के लिए प्रतिदिन कुछ नियमो का पालन करना आवश्यक है। वे नियम इस प्रकार हैं - १. भोजन कितनी बार करना, २. छहों रसों का अथवा एक, तीन, चार आदि का त्याग करना, ३. पान-शर्बत, ठंडाई, काढ़ा आदि पेय कितनी बार लेना-कितने लेना, ४. कुंकुम-चन्दनादि लगाना या नहीं, ५. उबटन-क्रीम-पाउडर का त्याग, ६. पुष्प या पुष्पमाला धारण करना अथवा नहीं व कितनी, ७, पान-बीड़ा चबाना व नहीं, ८. गीतादि गाना-सुनना के सम्बन्ध में नियम, ९. नृत्य कराना-करना, १०, ब्रह्मचर्य पालन व नहीं, १०. स्नान कितनी बार करना, ११, आभूषणों का प्रमाण, १२. वस्त्रों का प्रमाण, १३, वाहनो की सीमा, १४. शैया, १५. आसन प्रमाण, १६. सचित्त वस्तु, १७. संख्या गिनती करना । इस प्रकार ये १७ नियम प्रतिदिन प्रातः निश्चित कर दिन में दृढ़ता से पालन करना चाहिए। इसी प्रकार रत्नकरण्ड श्रावकाचार में भी उपद्दिष्ट हैं ।। १५ ।। १६. नियमो यमश्च विहितौ द्वेषा भोगोपभोग संहारात् । नियमः परिमित कालो, यावज्जीवन यमो ध्रियते ।। ८७ ॥र. क. श्रा.! अर्थ - भोग और उपभोग की सामग्री सम्बन्धी व्रत विधान दो प्रकार से किया जाता है -१. नियम रूप से और २. यम रूप से । निश्चित काल की मर्यादा-घंटा, .. ATANAN PARALANARARAUZKATAKARAVAARALASZTANAGA धर्मागण्द श्रावकाचार-~२६१
SR No.090137
Book TitleDharmanand Shravakachar
Original Sutra AuthorMahavirkirti Acharya
AuthorVijayamati Mata
PublisherSakal Digambar Jain Samaj Udaipur
Publication Year
Total Pages338
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, Spiritual, & Principle
File Size6 MB
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